भगवान को मन से कैसे पहचाने?, भगवान की शक्ति का अपने अंदर अनुभव कैसे करें ?

भगवान को मन से कैसे पहचाने?, भगवान की शक्ति का अपने अंदर अनुभव कैसे करें ?

भगवान को मन से कैसे पहचाने?,   भगवान की शक्ति का अपने अंदर अनुभव कैसे करें ?,  भगवान को सच्चे सहायक के रूप में प्राप्त करें  भगवान की प्राप्ति के मार्ग में तीन विघ्न

भगवान को मन से कैसे पहचाने 

सारा संसार मन के ही आधार पर स्थित है और मन के ही अनुसार तुम्हें उसका रंग - रूप भी दिखलायी देता है । तुम्हारा मन यदि शुद्ध है तो तुम्हें जगत में भी शुद्धपन अधिक दिखेगा ।


जिनको अपने मन में भगवान् विराजमान दिखते हैं , उन्हें सारे जगत में भगवान् दिख सकते हैं और जिनके मनमें पाप भरे हैं उनको जगत पापों से भरा दिखता है । जीवन्मुक्त महापुरुष समस्त संसार को ब्रह्ममय देखते हैं , भक्त जगत को भगवान से परिपूर्ण पाते हैं और इसीलिये दोनों सर्वत्र तथा सर्वदा परम शान्ति और परमानन्द को प्राप्त रहते हैं । 

भगवान की शक्ति का अपने अंदर अनुभव करें

यदि सुख और शान्ति पाना चाहते हो तो पहले मन में सुख और शान्ति की मूर्तियाँ स्थापन करने की चेष्टा करो । अपने मन के विचार के अनुसार वस्तु तुम्हें प्राप्त होगी और तुम भी वैसे ही बन जाओगे । तुम यदि निश्चय कर लो कि पाप - ताप न तो तुम्हारे अंदर हैं और न कभी तुम्हारे समीप आ सकते हैं तो निश्चय समझो कि पाप - ताप तुम्हारे पाससे भाग जायेंगे- इतना ही नहीं , तुम जहाँ भी जाओगे वहाँ दूसरों के पाप - तापों को भी भगा सकोगे । 


यह सत्य है और ध्रुव सत्य है कि भगवान् नित्य तुम्हारे साथ हैं , वे सर्वथा तुम्हारा संरक्षण करते हैं और आत्मदृष्टि से तुम्हारा स्वरूप भी नित्य शुद्ध - बुद्ध और निष्पाप है । तुम इस सत्य तत्त्व को भूलकर अपने को पापात्मा , दोष और कुविचारों से युक्त , निर्बल और असहाय मान बैठे हो और ऐसा मानते - मानते वस्तुतः ऐसे ही हो | भी चले हो । अब इसके विपरीत अभ्यास करो , प्रतिपल भगवान का , भगवान की कृपा का और भगवान की शक्ति का अपने अंदर अनुभव करो । 


इसका यह अर्थ नहीं है कि तुम पाप करते रहो , दुष्ट विचार और दुर्गुणों में प्रीति करके उन्हें बढ़ाते रहो , भगवान को न मानकर पार्थिव पदार्थों पर अभिमान करो और ऐसा करते हुए भी अपने को शक्तिमान् और बलवान् मान बैठो और भगवान को भूलकर केवल अहङ्कार में ही डूबे रहो । 


भगवान को सच्चे सहायक के रूप में प्राप्त करें


मन के शुभ निश्चय के अनुसार ही शुभ आचरण भी करो । यह सत्य है कि भगवान की कृपा के बल से तुम्हारे मन का निश्चय अटल हो जायगा और तुम्हारे आचरण अपने - आप शुभ बनने लगेंगे , परंतु तुम नित्य उस कृपा का अनुभव करते रहो और कृपा के बल से तमाम बुराइयों को हटाते हुए कल्याण के मार्ग में बढ़ते रहो । दुष्ट विचार , दुर्गुण और दुष्कर्मो को त्यागकर प्रभुस्मरण , अहिंसा , सत्य , क्षमा , संतोष , प्रेम , दया , सेवा , सरलता और परहित - रति आदि शुभ विचार , सद्गुण और सत्कर्मों के ग्रहण करने पर कहीं विपत्ति आ जाय , बड़े भारी संकट का सामना करना पड़े तो घबड़ाकर इन्हें छोड़ मत दो , मनमें जरा भी ऐसा संदेह न आने दो कि अशुभ को - छोड़कर शुभ को ग्रहण करने से ऐसा हुआ है । 


विश्वास रखो ये विपत्ति और संकट वास्तव में विपत्ति और संकट नहीं हैं , ये तो भगवान के भेजे हुए तुम्हारे मददगार हैं जो विपत्ति और संकट का स्वाँग भरकर कसौटी में कस - कसकर तुम्हें सर्वथा निर्दोष बनाने के लिये आये हैं । इन्हें देखकर घबड़ाओ मत । इनका स्वागत करो और अपनी सरल , शुभ , शुद्ध और अटल साधना से अपनी चाल पर सुदृढ़ रहकर - इनके नकली स्वाँग को हटाकर इन्हें अपने सच्चे सहायक के रूप में प्राप्त कर लो । 


भगवान की प्राप्ति के मार्ग में तीन विघ्न 


भगवान के पावन मार्ग में सबसे बड़े विघ्न तीन हैं - विषयभोगों की कामना , मान - बड़ाई का मोह और अश्रद्धा । जहाँतक हो सके इन तीनों से बचो । बुरे विचार , बुरे गुण और बुरे कर्म तब तक पूरी तौर से नहीं मिटेंगे जबतक ये तीनों रहेंगे । भगवान् ही एकमात्र प्राप्त करने योग्य वस्तु हैं , मान - बड़ाई का मोह हमें बार - बार मृत्यु के मुख में ले जाने वाला है और अश्रद्धा सारे परमार्थ विचारों का नाश करने वाली है , बार - बार ऐसा विचार कर के मान - बड़ाई के मोह तथा अश्रद्धा का त्याग करो और एकमात्र भगवान को प्राप्त करने की साधना में लग जाओ और भगवान की सर्वत्र सत्ता , उनकी कृपा और उनकी शक्तिपर विश्वास करने से सहज ही तुम ऐसा कर सकोगे । 


मन को विशुद्ध बनाते रहोगे , बुरी भावनाओं का त्याग करते रहोगे तो भगवान की कृपा का अनुभव तुम्हें होगा ही । निरन्तर सद्भावनाओं को मन में लाने की चेष्टा करो । सद्भावनाओं के आते ही बुरी भावनाएँ अपने - आप नष्ट हो जायँगी । सद्भावनाओं से सद्गुणों की और सत्कर्मों की वृद्धि होगी और तुम परम शान्ति और परमानन्द को प्राप्त कर सकोगे । 


परम शान्ति और परमानन्द एक भगवान में ही हैं और भगवान तुमसे कभी अलग नहीं हैं , वे नित्य तुम्हारे साथ हैं , तुमपर नित्य उनकी कृपा की अनवरत वर्षा हो रही है , तुम सदा उनकी कल्याणमयी छत्र - छाया में हो , तुम्हारा सारा फिक्र उनको है और वे ही स्वयं नित्य तुम्हारा योगक्षेम वहन कर रहे हैं । 

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