कालिका देवी मंदिर, कालिका देवी की कथा
श्री कालिका देवी मंदिर
श्री काली देवी का सर्वप्रसिद्ध शक्तिपीठ भारत के प्रमुख नगर कोलकाता में स्थित है। यहां पर भगवती शती के केश (बाल) गिरे थे यहां श्री काली देवी के तीन मंदिर क्रमशः रक्ताम्बरा, मुंडमालिनी तथा नुक्केशिनी नामों से हैं। परंतु प्रिय पाठकों ! इस लेख में हमने श्री काली माता के एक अन्य प्रभावशाली भवन को सम्मिलित किया है।
चंडीगढ़ से कुछ दूरी पर, शिमला जाने वाले मार्ग में "कालिका जी" नाम से एक स्टेशन है, जहां से शिमला जाने वाले मार्ग में रेल की छोटी लाइन प्रारंभ होती है। यहां पर आदि भगवती श्री कालिका देवी का एक छोटा, परंतु अत्यंत तेजस्वी एवं प्रभावशाली मंदिर है। इसी मंदिर के नाम से कस्बे को "कालिका" पुकारा जाता है।
इसकी मान्यता के विषय में ऐसा कहा जाता है कि माता के बुलाने पर भक्तजन चुंबक की तरह खिंचे चले आते हैं। श्री कालिका मंदिर के पुजारियों द्वारा माता के अनेक चमत्कारो की घटनाएं सुनने को मिलती है। पुजारियों की ऐसी मान्यता है कि सती के केशों के कुछ अंश इस स्थान पर भी गिरे थे। यद्यपि इसकी गणना शक्तिपीठो में नहीं है, तथापि स्थान के प्रभाव एवं माता के चमत्कारों के कारण इसकी मान्यता बहुत अधिक है। मंदिर में माता के दर्शन पिंडी के रूप में किए जाते हैं।
श्री कालिका मंदिर की कथा
एक दंत-कथा के अनुसार बहुत प्राचीन काल में यहां राजा जयसिंह देव का राजा था, जिन्होंने इस मंदिर में श्री कालिका देवी की एक प्रतिमा स्थापित की थी। एक बार नवरात्रों के अवसर पर भगवती जागरण हो रहा था। राजमहल की स्त्रियां इकट्ठे होकर कालिका जी का स्तवन गान करती थी। बड़े आनंद का समय था तब स्वयं भगवती एक दिव्य स्त्री का वेश धारण करके, उन राज-स्त्रियों में सम्मिलित होकर कीर्तन करने लगी। इस अवसर पर महाराजा जयसिंह देव भी उपस्थित थे। वह मां की लीला को समझ न पाए और भगवती की मधुर ध्वनि एवं दिव्य सौंदर्य देखकर मोहित हो गए।
कीर्तन की समाप्ति पर कामातुर राजा ने देवी का हाथ पकड़ लिया। देवी ने कहा - मैं प्रसन्न हूं, तू वर मांग ले, क्या चाहता है ? उत्तर में राजा ने प्रणय निवेदन कर दिया, मैं आपसे विवाह करना चाहता हूं। बस फिर क्या था ? कालिका क्रोधित हुई और उन्होंने श्राप दे दिया, कि जिस राज्य के अभिमान में तेरा यह साहस हुआ है उसके सहित तेरा सर्वनाश हो जाएगा। इतना कहकर भगवती अदृश्य हो गई। तब मंदिर में सिंह गर्जन करने लगा। पर्वत जमीन में धंसने लगे और श्री कालिका जी की मूर्ति भी पहाड़ में प्रवेश करने लगी।
मंदिर के पिछले भाग में एक महात्मा जी रहते थे। उन्होंने माता कालिका की विशेष पूजा आराधना करते हुए विनती की - हे मातेश्वरी ! हे महामाया ! बस अब क्षमा करो। तब देवी की मूर्ति उसी रुप में पहाड़ के साथ वैसी ही अवस्था में रह गई। आज भी देवी का केवल सिर दिखाई देता है। देवी के श्राप का फल यह हुआ कि शत्रुओं ने राजा जयसिंह देव पर चढ़ाई कर दी और राजा अपने दोनों पुत्रों सहित मारा गया। पूरा नगर कालिका जी के श्राप के कारण नष्ट हो गया। इस स्थान पर बिल्कुल उजाड़ हो गया था। राज्य का कहीं नामोंनिशान न रहा। माना जाता है कि वर्तमान कस्बे का निर्माण उसके कई वर्षों के बाद हुआ।
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