वनवास से अयोध्या वापस लौटने पर हुआ श्री राम का राज्याभिषेक

वनवास से अयोध्या वापस लौटने पर हुआ श्री राम का राज्याभिषेक



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अयोध्या के लिए प्रस्थान                    

राम ने विभीषण से अयोध्या लौटने की आज्ञा मांगी तथा कहा- “ हे मित्र ! मेरे वनवास के चौदह वर्ष पूरे हो गए है । भरत मेरे लौटने का इंतजार कर रहा होगा । एक दिन की भी देर होने पर वह अपने प्राण त्याग देगा , अतः मुझे आज ही अयोध्या जाने की आज्ञा दीजिए । 

विभीषण ने उन्हें कुछ दिन लंका में ही रहने के लिए आग्रह किया , लेकिन राम नहीं माने । तब विभीषण ने पुष्पक विमान लाने का आदेश दिया । विमान आ जाने पर राम ने कहा- " विभीषण ! लंका जाकर इस विमान को राजकोष के रत्नों और आभूषणों से भरकर लाइए और इन वानर वीरों पर रत्नों और आभूषणों की वर्षा कर दीजिए , क्योंकि इन्होंने अपने प्राणों की चिंता न करके युद्ध में विजय दिलाने में हमारी सहायता की है । " 

विभीषण ने राम की आज्ञा का पालन किया तथा वानरो पर रत्नों और आभूषणों की वर्षा कर दी , इससे वानर प्रसन्न हो उठे । राम , लक्ष्मण , सीता , सुग्रीव , हनुमान , अगद , जामवंत और पुष्पक विमान पर बैठ गए । राम और लक्ष्मण वानर - सेना से विदा लेकर अयोध्या के लिए प्रस्थान कर गए । 

विमान आगे बढ़ता जा रहा था । राम मार्ग में आने वाले प्रमुख स्थानों के विषय में सीता को बताते जाते थे । उन्होंने त्रिकूट पर्वत पर स्थित लंका की सुंदरता की प्रशंसा की । उन्होंने युद्ध स्थल में मृत पड़े राक्षसों के शवों को दिखाते हुए कहा कि इन्हें लक्ष्मण और सुग्रीव ने मारा है । इसके बाद राम ने समुद्र पर बना पुल दिखाया । 

किष्किंधा पहुंचने पर सीता ने राम से अनुरोध किया कि हमें सुग्रीव की रानियों को भी अयोध्या ले चलना चाहिए । राम ने विमान को किष्किघा में उतारने का आदेश दिया । सुग्रीव विमान से उतरकर अपनी रानियों के पास गए तथा तारा व रुमा को युद्ध का सारा हाल सुनाया । उन्होंने सीता के अनुरोध के विषय में भी बताया । दोनों रानियाँ खुशी से तैयार होकर सुग्रीव के साथ आ गईं । 

विमान अयोध्या की ओर चल पड़ा । आगे चलकर ऋष्यमूक पर्वत आया तो राम ने सीता को बताया कि उनकी सुग्रीव के साथ मित्रता इसी पर्वत पर हुई थी । पंपा सरोवर दिखने पर राम ने वहाँ शबरी से हुई भेट के विषय में बताया । उन्होंने वह स्थान भी दिखाया जहाँ उन्होंने कबंध को मारा था । जटायु जिस स्थान पर घायल अवस्था में मिला था , राम ने सीता को वह स्थान भी दिखाया । पंचवटी के आने पर राम ने सीता को अपनी पर्णकुटी दिखाई । 

राम ने मार्ग में आए अगस्त्य ऋषि और अत्रि ऋषि के आश्रम दिखाए । विमान चित्रकूट से होकर यमुना नदी के ऊपर से उड़ते हुए प्रयाग पहुंचा । वहाँ से शृंगवेरपुर दिखाई देने लगा । फिर सरयू नदी और अयोध्या नगरी दिखाई देने लगी । 

अयोध्या नगरी दिखते ही राम भावुक हो उठे । उन्होंने सीता से कहा- " हे सीते ! अयोध्या को प्रणाम करो । मुझे अपनी मातृभूमि अपने प्राणों से भी अधिक प्रिय है । मुझे यहाँ का प्रत्येक निवासी प्रिय लगता है ।" सीता के साथ - साथ बाकी सभी ने भी अयोध्या को प्रणाम किया ।

हनुमान द्वारा अयोध्या का समाचार लाना

 राम के कहने पर विमान को भारद्वाज ऋषि के आश्रम में उतारा गया । राम ने जाकर ऋषि को प्रणाम किया और उनसे अयोध्या की स्थिति की जानकारी ली । ऋषि भारद्वाज ने बताया " भरत आपके लौटने की प्रतीक्षा कर रहे हैं । 

अयोध्यावासी भी आपके दर्शनों के लिए व्याकुल है । " भारद्वाज ऋषि के अनुरोध पर राम ने रात उनके आश्रम में ही बिताई । उन्होंने सबका परिचय कराया तथा ऋषि को रावण पर विजय प्राप्त करने तक की सारी घटनाएँ बताई । 

प्रात: राम ने हनुमान को बुलाकर कहा- “ हे हनुमान ! आप अयोध्या जाकर भरत के मन की स्थिति जानें । उससे कहें कि हमने चौदह वर्ष का वनवास पूरा कर लिया है । मार्ग में आप निषादों के राजा गुह से भी मिलें । वे मेरे शुभचिंतक और मित्र हैं । उन्हें हमारी कुशलता का समाचार दें । उनसे भी भरत के विषय में समस्त समाचार मिल जाएँगे ।

हनुमान ने वानर का रूप त्यागकर मनुष्य का रूप धारण किया । वे निषादराज गुह से मिले । राम के लौटने का समाचार पाकर गुह बहुत प्रसन्न हुए । गुह ने बताया कि भरत दिन - रात राम का स्मरण करके उनके आने की प्रतीक्षा कर रहे हैं । यह जानकारी पाकर हनुमान निश्चित हो गए । वे भरत के पास नंदिग्राम पहुंचे । हनुमान के मुख से राम के आने की सूचना पाते ही भारत प्रसन्नता से झूम उठे । उन्होंने हनुमान को गले से लगाते हुए कहा- " आज मेरी चौदह वर्षों की तपस्या पूर्ण हो गई । 

श्री राम का राज्याभिषेक

भरत से मिलकर हनुमान राम के पास लौट आए और उन्हें भरत के मन की बातें विस्तार से बताई । भरत के मन में अपने प्रति प्रेम भाव जानकर राम का मन भी द्रवित हो गया । वे विमान में बैठकर अयोध्या की ओर चल पड़े । भरत ने अयोध्यावासियों को राम के लौटने का शुभ समाचार दिया । 

सारी अयोध्या नगरी आनन्द से झम उठी । लोगों ने भव्य पर स्वागत की तैयारियां की । पूरे नगर में महान उत्सव मनाए जाने - की तैयारियां होने लगी । मंगल - गीत गाए जाने लगे हर तरफ खुशी का वातावरण नजर आने लगा । नंदिग्राम में कौशल्या , कैकेयी व सुमित्रा तीनो माताएं और भरत , शत्रुघ्न पत्नियों सहित विमान की प्रतीक्षा करने लगे । 

वहाँ अयोध्यावासियों का एक विशाल जनसमूह भी एकत्रित था । जन - समूह को देखकर ऐसा लग रहा था मानो पूरा अयोध्या नगरी ही वहाँ आ गया हो । पुष्पक विमान को देखते हो जय श्री राम के जयकारे लगने लगे जिससे सम्पूर्ण आकाश गूंज उठा । 

विमान से उतरकर राम , लक्ष्मण और सीता ने माताओं के चरण स्पर्श किए । माताओं ने आरती उतारकर उनका स्वागत किया तथा आशीर्वाद दिया । भरत और शत्रुघ्न ने राम के चरण स्पर्श किए । राम ने उन्हें गले से लगा लिया । सबकी आँखे अश्रुपूरित थी । 

राम ने अपने साथ आए सुग्रीव , विभीषण , हनुमान आदि का परिचय परिवारजनों से कराया । राम ने पुष्पक विमान को कुबेर के पास वापस भेज दिया । रावण ने उसे कुबेर से छीन लिया था । इसके बाद राम सबके साथ गुरु वशिष्ठ के आश्रम में गए । वहां पहुंचकर उन्होंने गुरु वशिष्ठ के चरण स्पर्श किए । गुरु वशिष्ठ राम के लौटने से भाव - विभोर हो उठे । गुरु ने राम को आशीर्वाद दिया । वहां से सभी राजमहल की ओर चल दिए । 

राजमहल पहुंचने पर गुरु वशिष्ठ ने कहा कि कल श्री राम का राज्याभिषेक किया जाएगा । इसके साथ ही राज्याभिषेक के लिए सभी आवश्यक तैयारियां की जाने लगी । राजमहल को बहुत ही सुन्दर व आकर्षक ढंग से सजाया जाने लगा । इसके अलावा घरों व पूरे नगर को भी घी के दीपकों व अन्य विधियों से सजाया जाने लगा । 

अगले दिन राम और सीता को सोने से बने सुंदर सिंहासन पर बैठाया गया । गुरु वशिष्ठ ने श्री राम का राज्याभिषेक किया बाह्मणों ने वेदों के मंत्रों को पढ़कर राम को तिलक लगाया । मंगल - गीतों के मध्य माताओं ने राम और सीता की आरती उतारी राज्य - सभा मे उपस्थित सभी अतिथियों का मुंह मीठा कराया गया । लोगों ने प्रसन्नतापूर्वक एक - दूसरे को बधाइयाँ दी । आतिशबाजी करके पूरा उत्सव मनाया गया । नगर भर मे मिठाइयां बांटी गई । पूरी अयोध्या नगरी राममय हो गई । 

देवलोक में भी उत्सव जैसा उत्साह छा गया । देवराज इंद्र ने महाराज राम को कमल के सौ पुष्पों की माला भेट मे दी । राज्याभिषेक के बाद राम ने सुग्रीव , हनुमान , अंगद , जामवंत और विभीषण को गले से लगाया और सबको बहुमूल्य और भव्य उपहार भेंट किए । सीता ने अपना कंठ हार उतारकर हनुमान को भेंट किया तो उनकी आँखें भर आई । हनुमान ने कंठ - हार लेकर सीता के चरण छुए और हार को गले में पहन लिया । 

सीता ने तारा और रुमा को बहुमल्य वस्त्र , आभूषण और रत्न भेट स्वरूप दिए । सुग्रीव , हनुमान , अंगद , विभीषण आदि कुछ दिनों तक अयोध्या में  रहने के बाद अपने - अपने स्थानो को लौट गए । राम ने अनेक वर्षों तक अयोध्या पर राज किया । उनके शासनकाल मे प्रजा समृद्ध व संतुष्ट थी । हर तरफ शांति का वातावरण था । राज्य में किसी से भी किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाता था । राम राज्य एक आदर्श राज्य था ।

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