भगवान के समीप बैठने की एक उपासना, क्या है भगवान की उपासना ?

भगवान के समीप बैठने की एक उपासना, क्या है भगवान की उपासना ?

भगवान के समीप बैठने की एक उपासना,   क्या है भगवान की उपासना ,  सभी की सेवा में भगवान की सेवा है,  सदा - सर्वदा भगवान के नाम का गुण गान करें,  निरन्तर भगवान का चिन्तन करें,  मानव - जीवन का सदुपयोग,

सभी की सेवा में भगवान की सेवा है

समस्त विश्व के सम्पूर्ण प्राणी भगवत्स्वरूप हैं , यह जानकर सबको बाहर की स्थिति के अनुसार हाथ जोड़कर प्रणाम करो या मन से भक्तिपूर्वक नमन करो । किसी भी प्राणी से कभी द्वेष मत रखो , किसी को कटुवचन मत कहो , किसी का मन मत दुखाओ और सब के साथ आदर , प्रेम तथा विनय से बरतो । यह भगवान के समीप बैठने की एक उपासना है । 


तुम्हारे पास विद्या - बुद्धि , अन्न धन , विभूति - सम्पत्ति है - सब भगवान की सेवा के लिये ही तुम्हें मिली है । उसके द्वारा तुम गरीब - दुःखी , पीड़ित - रोगी , साधु - ब्राह्मण , विधवा - विद्यार्थी , भय विषाद से ग्रस्त मनुष्य , पशु , पक्षी , चींटी - सब की यथायोग्य सेवा करो - उन्हें भगवान् समझकर , निरभिमान होकर उनकी वस्तु उनको सादर समर्पित करते हुए । यह भी भगवान के समीप बैठने की एक उपासना है । 


सदा - सर्वदा भगवान के नाम का गुण गान करें


तुम्हें जीभ मिली है - भगवान का दिव्य मधुर नाम - गुण - गान - कीर्तन करने के लिये और कान मिले हैं - भगवान का नाम - गुण - गान - कीर्तन सुनने के लिये । अतएव तुम जीभ को निन्दा - स्तुति , वाद - विवाद , मिथ्या - कटु , अहितकर - व्यर्थ बातों से बचाकर नित्य - निरन्तर भगवान के नाम - गुण - गान कीर्तन में लगाये रखो और कानों के द्वारा बड़ी समुत्कण्ठा के साथ उल्लासपूर्वक सदा - सर्वदा भगवान के नाम - गुण - गान - कीर्तन को सुनते रहो । यह भी भगवान के समीप बैठने की एक उपासना है । 


निरन्तर भगवान का चिन्तन करें


तुम्हें मन मिला है - सारी वासना कामनाओं के जाल से मुक्त होकर समस्त जागतिक स्फुरणाओं को समाप्त कर भगवान के रूप - गुण - तत्त्व का मनन करने के लिये और बुद्धि मिली है - निश्चयात्मिका होकर निरन्तर भगवान में लगी रहने के लिये । यही मन - बुद्धि का समर्पण है । भगवान् यही चाहते हैं । इसलिये मन के द्वारा निरन्तर अनन्य चित्त से भगवान का चिन्तन करो और बुद्धि को एकनिष्ठ अव्यभिचारिणी बनाकर निरन्तर भगवान में लगाये रखो । यह भी भगवान के समीप बैठने की एक उपासना है । 


तुम्हें शरीर मिला है भगवद्भाव से गुरुजनों की , रोगियों की , असमर्थों की आदरपूर्वक सेवा टहल करने के लिये , देवता - द्विज - गुरु - प्राज्ञ के पूजन के लिये , पीड़ित की रक्षा के लिये और सब को सुख पहुँचाने के लिये । अतएव शरीर को संयमित रखते हुए शरीर के द्वारा यथायोग्य सबकी सेवा - चाकरी - रक्षा आदि का कार्य सम्पन्न करते रहो । यह भी भगवान के समीप बैठने की एक उपासना है । 


मानव - जीवन का सदुपयोग


तुम्हें मनुष्य - जीवन मिला है , केवल श्रीभगवान का तत्त्वज्ञान , भगवान के दर्शन या भगवान के दुर्लभ प्रेम की प्राप्ति के लिये । यही मानव जीवन का परम साध्य है और इसी साध्य की प्राप्ति के लिये सतत सावधान रहते हुए यथायोग्य पूर्ण प्रयत्न करते रहना ही मनुष्य का परम कर्तव्य है । इस कर्तव्यपालन में सावधानी से लगे रहना ही वास्तविक उपासना है । 


इसके विपरीत भोगों - सुख की मिथ्या आशा - आस्था - आकाङ्क्षा को लेकर जो प्रयत्न करना है , वह तो प्रमाद है और आत्महत्या के समान है । अतएव भोग - सुख की मिथ्या आशा - आकाङ्क्षा का सर्वथा त्याग करके मानव - जीवन को सदा - सर्वदा सब प्रकार से भगवत्प्राप्ति के साधन में , अपनी स्थिति और रुचि के अनुसार ज्ञान - कर्म - उपासनारूप किसी भी उपासना में लगाये रखो । यही मानव - जीवन का सदुपयोग है और इसी में मानव - जीवन की सफलता है । यही भगवान के समीप बैठना है और यही यथार्थ उपासना है ।

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