लक्ष्मण ने ऐंद्रास्त्र चलाकर किया मेघनाद का वध | सम्पूर्ण रामायण

लक्ष्मण ने ऐंद्रास्त्र चलाकर किया मेघनाद का वध | सम्पूर्ण रामायण



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वानर सेना ने लंका में मचाया हाहाकार

सुग्रीव ने रात को लंका पर आक्रमण की योजना बनाई । उसके आदेशानुसार वानर मशालें लेकर लंका में घुस गए । लंका के द्वारो की रक्षा कर रहे राक्षस भयभीत होकर भाग खड़े हुए । वानरों ने स्थान-स्थान पर आग लगा दी । हाथियों और घोड़ो के रहने के स्थान भी जला डाले । सब ओर हाथियों के चिघाड़ने और घोड़ों के हिनहिनानेे का शोर फैल गया ।

अन्न भंडार आग की लपटों से घिर गए वानर सेना लंका के सभी भवनों व घरों आदि को जलाने लगी । राक्षस सेना के बचे हुए योद्धा कंपन प्रजंघ , यूपाक्ष , कुंभ , निकुंभ आदि युद्ध करते-करते मारे गए । लंका को आग की लपटों में जलता छोड़कर वानर सेना लौट आई । लंका मे हाहाकार मच गया ।

मकराक्ष का वध

सवेरा होते ही खर के पुत्र मकराक्ष के नेतृत्व मे राक्षस - सेना युद्ध करने पहुंची । मकराक्ष ने राम पर आक्रमण किया किन्तु राम ने उसे अग्नि बाण चलाकर उसे मार डाला । लंका के समस्त वीर योद्धाओ के मर जाने पर रावण अत्यधिक चिन्तित हुआ तथा मेघनाद से युद्ध करने के लिए कहा । मेघनाद राम और लक्ष्मण की शक्तियों से परिचित हो चुका था । इसलिए वह युद्ध से पूर्व देव - दानवों को यज्ञ करके उन्हें प्रसन्न करना चाहता था ।

अत: वह यज्ञशाला की ओर चला गया । वह देव - दानवों का आशीर्वाद लेकर युद्ध करने पहुंचा । उसने अदृश्य होकर वानर - सेना पर बाण चलाये । वह राम - लक्ष्मण को भी दिखाई नहीं दे रहा था । इसलिए वे उस पर बाण नहीं चला पा रहे थे ।

लक्ष्मण और मेघनाद के बीच युद्ध

मेघनाद ने बाण चलाकर राम और लक्ष्मण को घायल कर दिया । मेघनाद को मारने का अन्य कोई उपाय न देखकर लक्ष्मण उस पर ब्रह्मास्त्र चलाना चाहता था किन्तु राम ने रोक दिया । मेघनाद लंका चला गया तथा कुछ समय पश्चात् जब वह पश्चिमी द्वार से बाहर आया तब उसके रथ मे सीता के वेश मे एक राक्षसी बैठी हुई थी । उसने हनुमान को भ्रमित करने के लिये तलवार चलाकर सीता के रूप में राक्षसी का वध कर दिया तथा हनुमान से कहा- इसी सीता के कारण यह युद्ध हो रहा है ।

 मैंने सीता का वध कर दिया है । ' हनुमान से सीता वध की सूचना पाकर राम लक्ष्मण शोक में डूब गए तथा विलाप करने लगे । सीता - वध का समाचार पाकर विभीषण उनके पास पहुंचे और समझाया कि मेघनाद के पास मायावी शक्तियां है । उसने माया से उत्पन्न सीता का वध किया है वह असली सीता नहीं है ।

मेघनाथ द्वारा निकुभिला देवी को प्रसन्न करने के लिए यज्ञ

मेघनाद युद्ध - स्थल छोड़कर निकुभिला देवी को प्रसन्न करने के लिए मंदिर में चला गया तथा यज्ञ करने लगा । विभीषण ने राम को यह रहस्य बताया । उसने कहा कि यदि मेघनाद इस यज्ञ को पूर्ण करके निकुभिला देवी को प्रसन्न कर लेगा तो उसे मारना असंभव हो जाएगा । इसलिए उसके यज्ञ को पूरा नहीं होने देना चाहिए ।

राम की अनुमति पाकर लक्ष्मण विभीषण के साथ चल दिया । वानरो और भालू सेना उनके पीछे - पोछे चल रही थी । इस सेना ने लंकावासियों पर आक्रमण कर दिया । राक्षसों के चीत्कारों से पूरी लंका में हाहाकार मच गया । जब यह सारी सूचना यज्ञ कर रहे मेघनाद तक पहुंची तो वह विचलित हो उठा और यज्ञ छोड़कर राक्षसों को बचाने के लिए चल पड़ा । मंदिर से आते हुए उसे मार्ग में लक्ष्मण खड़ा मिला । विभीषण ने लक्ष्मण को उस स्थान पर खड़ा किया था ।

विभीषण को देखकर मेघनाद के मुख पर घृणा के भाव आ गए । उसने घृणा और क्रोध भरे शब्दो से विभीषण को लज्जित करते हुए कहा- " आप लक्ष्मण को यहां लाए है । लक्ष्मण स्वयं इस स्थान के विषय में नहीं जानता । आप मेरे पिता के सगे भाई है । लंका आपकी मातृभूमि है । आप यही जन्मे , पले और बड़े हुए है । आपको अपनो और परायों में भेद जानना चाहिए था । पराए श्रेष्ठ होकर भी पराए रहते है । वे अपने नहीं हो सकते।

लक्ष्मण को यहाँ लाकर आपने देशद्रोही की भूमिका निभाई है । आपके इस देशद्रोह को लंकावासी कभी क्षमा नहीं करेंगे । विभीषण को अपमानित करके मेघनाद ने लक्ष्मण पर बाणों से आक्रमण कर दिया । लक्ष्मण ने भी पूरी शक्ति से बाण चलाए । दोनों में भयंकर युद्ध  छिड़ गया । विभीषण लक्ष्मण को युद्ध के लिए उत्साहित करता जाता था । उसने कहा कि मैं स्वयं मेघनाद का वध कर देता यदि यह मेरा सगा भतीजा न होता किन्तु तुम इसे अवश्य मार डालना ।

मेघनाद का वध

विभीषण की बाते से लक्ष्मण उत्साहित हो गया और उसने मेघनाद का कवच काट डाला । मेघनाद ने भी उसका कवच काट दिया । यह देख लक्ष्मण ने उसके सारथी का वध कर दिया लेकिन मेघनाद एक हाथ से रथ भी चलाने लगा और दूसरे हाथ से बाण छोड़ने लगा । वानरों ने उसके रथ के घोड़ो को गिरा दिया । मेघनाद दूसरे रथ पर सवार होकर युद्ध करने लगा । लक्ष्मण के द्वारा धनुष काट डालने पर मेघनाद ने नया धनुष ले लिया ।

विभीषण ने गदा के प्रहार से मेघनाद के चारों घोड़ों को मार दिया । मेघनाद को अपनी पराजय निश्चित लगने लगी । अपनी इस पराजय के लिए वह विभीषण को उत्तरदायी मान रहा था । यही कारण था कि वह पहले विभीषण का वध करना चाहता था । उसने रथ से कूदकर विभीषण पर शक्तिशाली बाण चलाया । किन्तु लक्ष्मण ने बाण को काट डाला ।

मेघनाद रथ से उतर गया था । अत: लक्ष्मण को उसे मारने का उचित अवसर मिल गया । उसने महर्षि विश्वामित्र द्वारा दिये गये ऐंद्रास्त्र को चलाकर मेघनाद का सिर काट डाला । मेघनाद के मरते ही राक्षसो की सेना भाग खड़ी हुई । लक्ष्मण और विभीषण राम के पास लौट आए । विभीषण ने उन्हें लक्ष्मण द्वारा मेघनाद के वध का समाचार सुनाया । प्रसन्न होकर राम ने लक्ष्मण को गले से लगा लिया । राम ने कहा कि अब लंका पर विजय पाना सुनिश्चित है क्योंकि तुमने लंका के सबसे बड़े योद्धा को मार दिया है । 

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