क्या है मनसा देवी मंदिर ( चंडीगढ, हरिद्वार) की कथा और इतिहास ?

क्या है मनसा देवी मंदिर ( चंडीगढ, हरिद्वार) की कथा और इतिहास ?


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मनसा देवी मंदिर

श्री मनसा देवी का प्रसिद्ध मंदिर भारत के प्रमुख नगर चंडीगढ़ के समीप मनीमाजरा नामक स्थान पर है। मनसा देवी का यह स्थान प्रमुख शक्ति पीठ माना गया है। यहां पर सती का मस्तक गिरा था। यहां चैत्र के नवरात्रों में बहुत भारी मेला लगता है। इस अवसर पर लाखों की संख्या में श्रद्धालु दर्शन-पूजन करते हैं।

मनीमाजरा जाने के लिए चंडीगढ़ के बस स्टैंड से बसे सुविधा से मिल जाती हैं। इसके अतिरिक्त नगर के सभी भागों से हर प्रकार के वाहन मिल सकते हैं।

मनसा देवी के मंदिर का इतिहास 

मनसा देवी के बारे में वैसे तो बहुत सी कथाएं प्रचलित हैं। परंतु निन्नलिखित कथा प्रमाणिक मानी जाती है। मुगल सम्राट अकबर के समय की बात है चंडीगढ़ के पास मनीमाजरा नामक स्थान, जहां पर अब मनसा देवी का मंदिर स्थित है, एक राजपूत जागीरदार के आधीन जागीर थी सम्राट अकबर जागीरदारों और कृषको से लगान के रूप में अन्न वसूल करता था। एक बार प्रकृति के प्रकोप से फसल बहुत कम हुई जिससे राजपूत जागीरदार वसूली देने में असमर्थ रहे। इसलिए उन्होंने अकबर से लगान माफ करने की प्रार्थना की। यद्यपि मुगल सम्राट अकबर काफी अच्छा बादशाह था, लेकिन उसने उन जागीरदारों की बातों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया और क्रोधित होकर उन सब जागीरदारों को कैद करवा दिया।

उनके इस प्रकार गिरफ्तार हो जाने का समाचार शीघ्र चारों ओर फैल गया। तब दुर्गा के एक भक्त कवि गरीबदास ने दुर्गा जी की पूजा और हवन का आयोजन किया। देवी माता प्रसन्न हुई और प्रकट हो कर उससे बोली - तुम्हारी क्या इच्छा है? इस पर कवि गरीबदास ने कहा - मां आप कृपा करके उन निर्दोष जागीरदारों को अपनी कृपा से मुक्त करवा दो। माता ने प्रसन्न होकर गरीबदास को आशीर्वाद दिया और अंतर्ध्यान हो गई, और सब जागीरदार मुकदमा जीत गए और काजी द्वारा उस वर्ष का लगान स्थगित हो गया।

सब जागीरदार प्रसन्न होकर जब अपने-अपने घरों को वापिस लौटे तो उन्हें सारी बात का और देवी के प्रकट होने का पता चला। तब उन सबने मिलकर वहां एक मंदिर बनवा दिया जो की मनसा देवी अर्थात "मंशा को पूर्ण करने वाली देवी" के नाम से विख्यात हुआ।

जब वह मंदिर स्थापित हो गया तो एक दिन महाराजा पटियाला, जोकि देवी के बहुत बड़े भक्त थे, उन्हें स्वप्न में देवी ने दर्शन दिए और कहा कि मैं मनीमाजरा नामक स्थान पर प्रकट हुई हूं। इसलिए तुम वहां एक मंदिर बनवाकर पुण्य लाभ अर्जित करो।

महाराजा पटियाला ने तुरंत देवी की आज्ञा का पालन किया और विशाल मंदिर जोकि मनसा देवी के नाम से ही प्रसिद्ध हुआ। इसके अतिरिक्त उन्होंने पटियाला शहर में भी दुर्गा का एक विशाल मंदिर बनवाया था। मंदिर में मनसा देवी की प्रतिमा तीन सिर और पांच भुजाओं वाली है। वाम भाग में हवन कुंड तथा शीतला का मंदिर है। दक्षिण भाग में चामुंडा देवी और लक्ष्मीनारायण जी का मंदिर है। सन्मुख भगवान शंकर जी का मंदिर है। पश्चिम की और शिव जी का प्राचीन तथा प्रधान मंदिर है। मंदिर की परिक्रमा में भी अनेक देवी देवताओं की सुंदर मूर्तियां दीवारों पर बनाई गई है।

मनसा देवी के नाम से ही एक मंदिर हरिद्वार में शिवालिक पर्वत की चोटी पर भी है। इसकी गणना शक्ति पीठो में तो नहीं है लेकिन वर्तमान में इसकी मान्यता भी बहुत बढ़ रही है। हरिद्वार जाने वाले यात्री अवश्य ही इसका दर्शन करते हैं और मनोकामना की सिद्धि के लिए पास ही के एक वृक्ष पर मौली बांधते हैं। लगभग एक किलोमीटर की चढ़ाई पर वजह मंदिर बना है। मंदिर तक ट्राली में बैठकर भी जा सकते हैं।

मनसा देवी की कथा 

जिस समय जनमेजय का सर्प यज्ञ हो रहा था, तब ब्रहमा जी ने देवताओं से कहा - इस समय जगत में सर्प बहुत बढ़ गए हैं अतः अब जरत्कारू नाम के एक ऋषि होंगे, उनके पुत्र का नाम होगा आस्तीक। वही जनमेजय का सर्प यज्ञ बंद करा सकेंगे। देवताओं के पूछने पर ब्रहमा जी ने और भी बतलाया की जरत्कारू ऋषि की पत्नी का नाम भी जरत्कारू ही होगा। वह सर्पराज वासुकि की बहन होगी। उसके गर्भ में आस्तीक का जन्म होगा और वही सर्पों को मुक्त करेगा।

तब एलापत्र नाम के नाग ने सर्पराज से कहा हे वासुके ! ठीक है, मेरे विचार से भी आपकी बहिन जरत्कारू का विवाह उस जरत्कारू ऋषि से ही होना चाहिए। वे जिस समय भिक्षा के समान पत्नी की याचना करें उसी समय आप उन्हें अपनी बहिन दे दें।

इस बात के थोड़े दिनों बाद ही समुंद्र मंथन हुआ जिसमें वासुकि नाग की नेती (मथने वाली रस्सी) बनाई गई। इसलिए देवताओं ने वासुकि नाग को ब्रहमा जी के पास ले जाकर फिर से वही बात कहलवा दी जो एलापत्र नाग ने कही थी। वासुकी ने सर्पों को जरत्कारू ऋषि की खोज में नियुक्त कर दिया और उनसे कह दिया कि जिस समय जरत्कारू ऋषि विवाह करना चाहे उसी समय शीघ्र से शीघ्र आकर मुझे सूचित करना।

पाठकों ! इस कथा का क्रम तो और आगे चलेगा ही लेकिन हम आपको पहले यह बता दे कि जरत्कारू ऋषि की पत्नी जरत्कारू ही बाद में "मनसा देवी" के नाम से विख्यात हुई। कथा के इतिहास के अनुसार जरत्कारू ऋषि ने यह प्रण किया था कि मुझे मेरे ही नाम वाली कन्या मिल जाएगी और वो भी भिक्षा की तरह, जिसके भरण-पोषण का भार मेरे ऊपर ने रहे तो मैं उसे पत्नी रूप में स्वीकार कर लूंगा। ऐसा होने पर ही मैं विवाह करूंगा, अन्यथा नहीं। तब पितरों की अभिलाषा (मनसा) पूरी करने, देवताओं की इच्छा (मनसा) पूरी करने और स्वयं ऋषि की प्रतिज्ञा को पूरा करने के लिए वासुकि नाग की बहिन जरत्कारू का सबकी मनसा पूरी करने के कारण "मनसा देवी" ही अधिक विख्यात हुआ।

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