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सच्चा सुख कैसे प्राप्त करें 


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आनन्द , सच्चा आनन्द तुम्हारे अंदर है और वह नित्य है । तुम बाहरी वस्तुओं में- धन में , जन में , मान में , प्रतिष्ठा में , भोगों में , आराम में , विलासिता में और परिवार में आनन्द खोजते हो- यही तुम्हारा भ्रम है । 


आनन्द किसी भी सांसारिक स्थिति विशेष में नहीं है । तुम जो समझते हो कि ' मेरी अमुक परिस्थिति हो जायगी , इतना धन हो जायगा , अमुक अधिकार मिल जायगा , पुत्र हो जायगा , जगत्में यश फैल जायगा और लोग मेरा सम्मान करने लगेंगे , तब मैं सुखी हो जाऊँगा'- यह तुम्हारा भ्रम है । याद रखो तुम्हारे वर्तमान दुःखका या आनन्द के अभाव का कारण कोई परिस्थिति नहीं है , इसका प्रधान कारण है , नित्य - सत्य आन्तरिक आनन्द को न जानना । आनन्दमय भगवान के नित्य सांनिध्य का अनुभव न करना । याद रखो - जब तुम्हारी वृत्ति अन्तर्मुखी हो जायगी , जब तुम नित्य - निरन्तर सच्चिदानन्दमय के सांनिध्यका सर्वदा अनुभव करने लगोगे , जब उन्हीं आनन्दमय के साथ नित्य संयुक्त हो जाओगे , तब बाहरी कोई भी परिस्थिति तुम्हारे आनन्दको नहीं छीन सकेगी । अपमान , अकीर्ति , दरिद्रता , मित्रहीनता आदि किसी भी स्थितिमें तुम्हारे आनन्द का अभाव नहीं होगा । 


तुम जो अपने को दु:खी मान रहे हो , इसी से दु:खी हो । दु:खी मानने का कारण है अभाव का बोध । अभाव में प्रतिकूलता की अनुभूति होती है और प्रतिकूलता ही दु:ख है । संसार की परिस्थिति तो कभी ऐसी होगी ही नहीं कि जो सदा और सर्वथा सब के मन के अनुकूल हो । प्रत्येक परिस्थितिमें मङ्गलमय श्रीभगवान् स्वयं विद्यमान हैं , प्रत्येक परिस्थिति मङ्गलमय भगवान्का मङ्गल - विधान है और प्रत्येक परिस्थिति वस्तुतः लीलामय भगवान्की लीलाका ही एक अङ्ग है । यह विश्वास करके यदि तुम परिस्थिति के बाहरी रूप को न देखकर , परिस्थिति के परदे में छिपे हुए श्रीभगवान को , श्रीभगवान के मङ्गल - विधान को या श्रीभगवान की लीला को देखने लगो , उनका मधुर स्पर्श पा सको तो सभी परिस्थितियाँ तुम्हारे लिये अनुकूल हो जायँगी , क्योंकि सभी में भगवान की अनुभूति होगी - अभाव कहीं रहेगा ही नहीं और जब अभाव नहीं होगा तो दुःख भी नहीं होगा । वस्तुतः दुःख नहीं होगा , इतना ही नहीं - भगवान की संनिधि का अनुभव परम अनुकूल होने से तथा स्वयं परमानन्दमय होने से वह तुम्हारे लिये परमानन्द का कारण होगा । तुम उस समय ऐसे विलक्षण आनन्द का अनुभव करोगे कि फिर जागतिक किसी भी अभाव को स्मृति ही तुमको नहीं होगी । 


भाव - अभाव , अनुकूलता - प्रतिकूलता जो कुछ भी है , सभी लीलामय श्रीभगवान के स्वाँग हैं , जिनको तुम्हारे मङ्गल के लिये ही भगवान्ने धारण किया है । उन भगवान को जब पहचान लोगे तो फिर चाहे वे किसी भी सुन्दर या भयानक स्वाँग में रहें , तुमको न भय होगा , न दु : ख । स्वाँग तुम्हारे लिये मनोरञ्जन की सामग्री होगी और तुम उसे देख - देखकर पल - पलमें तथा पद - पदपर मुग्ध होते रहोगे । तुम्हारा दु : ख - स्रोत सदा के लिये सूख जायगा । तुम फिर स्वयं आनन्द के भण्डार बन जाओगे । 


जो लोग आनन्द के लिये परिस्थिति की अनुकूलता खोज रहे हैं या अभाव की पूर्ति करके आनन्द प्राप्त करना चाहते हैं , उनको कभी स्थिर नित्य आनन्द के दर्शन होंगे ही नहीं , क्योंकि उनका अभाव कभी मिटने का ही नहीं है । संसार में कहीं भी - किसी में भी पूर्णता नहीं है । वे जो कुछ भी पायेंगे , उसी में उन्हें अपूर्णता - अभाव की अनुभूति होगी और अभाव की अनुभूति ही प्रतिकूलता है । अतएव वे कभी सुखी हो ही नहीं सकेंगे । 


सच्चा सुख या परम आनन्द चाहते हो तो सांसारिक अभाव या प्रतिकूलताका ही अभाव कर दो भगवान् नित्य हैं , सत्य हैं , सर्वत्र , सर्वदा और सर्वथा हैं ; उन्हीं को देखो । उनका कहीं भी , कभी भी अभाव नहीं है । उनको सर्वत्र देखने लगोगे तब सांसारिक अभाव या प्रतिकूलता का अभाव अपने - आप ही हो जायगा ; क्योंकि भगवान के अभाव में ही – इनके होने का भ्रम हो रहा है । ये जहाँ दीख रहे हैं , वहाँ वस्तुतः ये नहीं हैं , वहाँ भगवान् ही हैं । यदि तुम सर्वत्र व्याप्त सर्वरूप में स्थित उन भगवान को देख सकोगे तो तुम्हें उस नित्य - सत्य आनन्द की प्राप्ति सहज ही हो जायगी , जिसकी खोज में तुम सदा - सर्वदा लगे रहते आये हो । 

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