क्या भगवान के चरणों का प्रेम पाना ही जीवन की सिद्धि है ?

क्या भगवान के चरणों का प्रेम पाना ही जीवन की सिद्धि है ?

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         भगवान के चरणों का प्रेम पाना

भगवान के चरणों का प्रेम - यही मानव जीवन की साधना और भगवान के चरणों का प्रेम - यही इस जीवन की सिद्धि है 

साधन सिद्धि राम पग नेहू ।

इस जगत में हम भगवान के प्रेम में जियें अर्थात् प्रेम की बात करें , प्रेम की बात सुनें , प्रेम के कार्य करें , सपने भी देखें तो प्रेम के ही और अन्त में प्रेम मय भगवान में जाकर हम विलीन हो जायँ , प्रेममय भगवान को प्राप्त कर लें , प्रेममय भगवान की लीला में प्रवेश कर जायँ , प्रेम - धाम में हमें स्थान मिले - मानव - जीवन का वास्तविक साफल्य इसी में है । 

भगवान के प्रेम को प्राप्त करने की कामना करें

मानव - जीवन की सफलता जगत के इतिहास में नाम रहने से नहीं है । इतिहास में नाम रहेगा तो हमें क्या मिल जायगा ? यदि हम नरकों में पड़े हों और इतिहास में लिखा हुआ है - ' बड़े अच्छे पुरुष थे ' , तो इतिहास में इस बात का उल्लेख होने से हमारी स्थिति में क्या अन्तर आयेगा ? जगत में नाम रहने की कामना और आशा सर्वथा मिथ्या है , भ्रम है । अतएव इस भ्रम को सर्वथा दूर कर भगवान के प्रेम को प्राप्त करने की कामना करें तथा उसके लिये प्रयत्न करें । 

भगवान के प्रेम को प्राप्त करने का सरल उपाय

भगवान के प्रेम को प्राप्त करने का सरल उपाय है - अपनी जान में बुरा काम करें नहीं और जो कुछ भी अच्छा काम करें , वह भगवान की सेवा के लिये , भगवान की प्रसन्नता के लिये करें । मनुष्य भगवान की ओर लगता है , पर संसार के ममता - मोह सामने आ जाते हैं और मनुष्य सोचता है - ' अमुक - अमुक काम निपट जायँ , फिर हम भगवान की प्राप्ति में पूरे लगेंगे । ' अमुक - अमुक काम कभी निपटते नहीं और देखते - देखते मानव - जीवन पूरा हो जाता है एवं हम हाथ मलते रह जाते हैं । 

इतना ही नहीं , यदि संसार की धन - दौलत में , यहाँ के भोगों में वृत्ति रही तो मरने के पश्चात् हम न जानें किस योनि में जायेंगे , हमारी क्या गति होगी , हम कहाँ जाकर प्रेत होंगे । शास्त्रों में बड़े विस्तार से विवेचन मिलता है कि मनुष्य कैसे प्रेतयोनि को प्राप्त होता है । शास्त्र का वह विवेचन सर्वथा सत्य है । यहाँ के कुकर्मो को करते समय मनुष्य सोचता नहीं , विचारता नहीं ; पर उन कुकर्मो के फलस्वरूप जब प्रेतयोनि में भीषण यातनाएँ प्राप्त होती है , तब जीव विकल हो जाता है । अतएव अभी से चेतने की आवश्यकता है । 

भगवान के प्रेम को प्राप्त करें 

भगवान ने कृपा करके हमें जो मानव शरीर प्रदान किया है , यह भगवान के प्रेम को प्राप्त करने का शुभ अबसर है । यदि हमने यह अवसर खो दिया तो अपना सर्वस्व गवा दिया । अतएव बड़ी गम्भीरता से विचार करने की आवश्यकता है । एक - एक श्वास जो जा रहा है , वह हमें मृत्यु के निकट ले जा रहा है । शरीर के नाश का उपक्रम हो रहा है । 

जैसे - जैसे समय बीत रहा है , हम सोचते हैं - हम बड़े हो रहे हैं । पर समय बीतने के साथ हम बड़े नहीं हो रहे हैं , हम छोटे हो रहे हैं ; हमारी आयु बढ़ नहीं रही है , घट रही है । कब मृत्यु हो जाय , कुछ पता नहीं । अतएव मृत्यु के आने से पहले - पहले हमारा यह धर्म है , परम कर्तव्य है कि इस जगत के समस्त झंझटों से अपने को मुक्त करके भगवान में लग जायँ , मन को भगवान में लगा दें । जहाँ मन भगवान्में फँसा कि जगत्से हटा । भगवान में आसक्ति हुई कि जगत से विरक्ति अपने - आप हो जायगी । जहाँ प्रकाश आया कि अन्धकार मिटा - यह नियम है । 

भगवान में लगन लगाने का प्रयत्न 

भगवान में लगने का प्रयत्न हमें स्वयं करना होगा ; दूसरा कोई हमारे लिये यह करेगा नहीं , कर सकता नहीं । यह अपने करने से होगा , अपनी इच्छा से होगा और होगा अवश्य , यदि हम करना चाहेंगे । निश्चित सिद्धान्त यह है कि भोग मिलने सहज नहीं हैं , पर भगवान मिलने सहज हैं , यदि हम उन्हें प्राप्त करना चाहें । भक्त की चाह भगवान में प्रतिफलित हो जाती है । शास्त्र की घोषणा है , भगवान की घोषणा है - 'जो मेरा हो गया है , मैं उसका हो जाता हूँ ।' 

भगवान का यह स्वभाव है - जिसको वे पकड़ लेते हैं , उसको छोड़ नहीं सकते ; क्योंकि वे छोड़ना जानते नहीं । हम छुड़ाना चाहेंगे , तब भी वे हमें छोड़ेंगे नहीं । अतएव मानव - देह की प्राप्ति से भगवत्प्रेम को प्राप्त करने का जो अवसर हमें मिला है , हम उसे हाथ से न जाने दें । इसी में बुद्धिमत्ता है , नहीं तो कुत्ते - बिल्ली आदि की भाँति हम भी मर जायँगे।


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