समाज, राष्ट्र, विश्व का सुधार कैसे होगा ?
व्यक्ति का सुधार
व्यक्तियों के समूह का नाम समाज है , समाज के समूह का नाम राष्ट्र और राष्ट्रों के समूह का नाम विश्व है । यदि प्रत्येक व्यक्ति विशुद्ध - चरित्र , सात्त्विक - गुणप्रधान , प्रेमपूर्ण- हृदय , परार्थ - त्यागी और संयमी हो जाय तो सारा विश्व स्वयमेव ही ऐसा बन जाय । पर मनुष्य दूसरे को देखता और उसका सुधार करना चाहता है । वह न तो अपनी ओर देखता है और न अपने दोषों को दूर कर के गुणों को ग्रहण ही करना चाहता है । फलस्वरूप समाज या विश्व में दोष बढ़ते रहते हैं ।
जब तक व्यक्ति का सुधार नहीं होगा , तब तक समाज बिगड़ा ही रहेगा । न तो कोई व्यवस्था उसे सुधार सकेगी , न कोई कानून ही । चोरी , जारी , हिंसा अपराध है- बुरी चीजें हैं । मनुष्य कहता है , किसी समाज में यह न हो । वह भाषण देता है , लिखता है , नियम बनाता – कानून बनाता है , पर स्वयं न इन्हें बुरा समझता है , न इनसे घृणा करता है और न इनका त्याग ही करना चाहता है । तब इनका समाज में अभाव कैसे होगा , कैसे समाज सुधरेगा ?
अपराध कैसे बढ़ते है ?
जब तक मनुष्य बुरे को हृदय से ठीक बुरा नहीं समझेगा , बुरे से घृणा नहीं करेगा , तब तक वह कहे कुछ भी , और चाहे वह सब के सामने अपराध न भी करे , पर उसके मन से तो अपराध होते ही रहेंगे और चुपके - चुपके वह बाहर भी करता रहेगा । कानून बनाने तथा मानने - मनवाने वाले भी सब व्यक्ति ही हैं , अत : कानून पुस्तकों में छपा रहेगा और अपराध बनते रहेंगे ।
जब व्यक्ति अपराध को मन से अपराध मानेगा , पाप को मन से पाप समझेगा , तब वह मन में भी जरा - सा पाप संकल्प उदय होने पर दु:खी होगा । अकेले में भी जरा - सा पाप करते डरेगा । फिर समाज से अपने - आप ही अपराध पाप निर्मूल हो जायेंगे । समाज सुधर जायगा -समाजों के सुधार से विश्व तक सुधर जायगा ।
विश्व का सुधार
मनुष्य के पास प्रधान तीन चीजें हैं - बुद्धि , मन और शरीर । इनमें प्रधान बुद्धि है । बुद्धि ही मार्ग का निर्णय करने वाली तथा शरीर - रथ की संचालिका सारथि है । बुद्धि जब अधर्म को धर्म , पाप को पुण्य बताने लगती है , तब वह मारी जाती है और बुद्धि का नाश होते ही मनुष्य का सब प्रकार से पतन हो जाता है । बुद्धि शुद्ध रहेगी , तब मन में शुद्ध संकल्पों का उदय होगा तथा शरीर के द्वारा शुभ क्रियाएँ होंगी । तब व्यक्ति अपने - आप ही ठीक हो जायगा । व्यक्ति का सुधार ही विश्व का सुधार है ।
आज जो दुनिया में कलह की आग धधक रही है , छोटी - सी झोपड़ी से लेकर बड़े - बड़े राष्ट्रों में विभिन्न निमित्तों से जो अवाञ्छनीय घटनाएँ घट रही हैं तथा स्थान स्थान से पद - पद पर त्याग , प्रेम , संयम एवं सद्भाव के अभाव से जो बुराइयाँ पैदा हो रही हैं , उनमें व्यक्ति का बुद्धिनाश ही प्रधान कारण है । व्यक्ति का अधर्म विचार तथा अधर्मा चरण ही प्रधान कारण है । यह किसी भी कानून से नहीं दूर हो सकता । इसके लिये व्यक्ति की बुद्धि शुद्ध होनी चाहिये और प्रत्येक व्यक्ति को अपने सुधार में लगना चाहिये ।
तुम्हारा सुधार तुम्हारे अपने चाहने तथा करने से ही होगा । इसलिये अपना सुधार चाहो , अपने दोषों को निर्मूल करने का प्रयत्न करो , अपने को संस्कृत करो , अपने को शुभ चरित्र , सच्चरित्र , सात्त्विक - चरित्र , उच्च - चरित्रवाला सुसंस्कृत पुरुष बनाओ और अपना शुभ निर्माण करो - इसके लिये लग जाओ श्रद्धा - विश्वासपूर्वक पूरे मन से , पूरी शक्ति लगाकर । दूसरे की ओर न देखो । भगवान् तुम्हारे सहायक होंगे । उनका बल तुम्हारे साथ होगा । उनसे प्रार्थना करो - उनकी कृपाशक्ति पर विश्वास करो । सारे विघ्नों का विनाश करके तुम्हें आगे बढ़ाकर ले जायगी शीघ्र ही उनकी कृपा । फिर समाज का , राष्ट्र का , विश्व का सुधार स्वयमेव ही हो जायगा ।
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