क्या है मानव जीवन का लक्ष्य | परमात्मा की ओर कैसे बढ़े ?

क्या है मानव जीवन का लक्ष्य | परमात्मा की ओर कैसे बढ़े ?

क्या है मानव जीवन का लक्ष्य,  परमात्मा की ओर कैसे बढ़े,  अशुभ विचारों से रहें सावधान,  संकल्पों का बार बार करें चिन्तन,

परमात्मा की ओर कैसे बढ़े ?

मनुष्य के द्वारा होने वाले शुभ - अशुभ कर्मो में प्रधान कारण उसके मन के विचार हैं । मनुष्य जिस प्रकार का चिन्तन करता है , जैसे संकल्प करता वह वैसा ही बनता है । अतएव सदा - सर्वदा अशुभ चिन्तन को हटाकर शुभ चिन्तन का अभ्यास करना चाहिये । भोग - कामना , क्रोध , लोभ , अभिमान , हिंसा , द्वेष , निर्दयता , परदोष दर्शन , डाह आदि सब अशुभ चिन्तन हैं । प्रात: काल उठते ही भगवान को नमस्कार करके भगवत्कृपा का आश्रय लेकर दिनभर के लिये शुद्ध संकल्प करना चाहिये । मन में दृढ़ता के साथ निश्चय करना चाहिये कि आज दिनभर में प्रभुकृपा से मैं भगवत्सेवा की कामना , क्षमा , त्याग , नम्रता , अहिंसा , प्रेम , दया , परगुणदर्शन , परायी उन्नति में प्रसन्नता आदि के साथ - साथ प्रभु के नाम गुण का चिन्तन ही करूँगा । अशुभ तथा अशुद्ध विचारों को कभी मन में तथा क्रिया में आने ही नहीं दूंगा । 

अशुभ विचारों से रहें सावधान

पुराना बुरा अभ्यास होने के कारण संकल्प करने पर भी अशुभ तथा अशुद्ध विचार मन में आयेंगे , पर सावधानी के साथ उनके आते ही उन्हें निकालकर उनकी जगह शुभ तथा शुद्ध विचारों को भरते रहना चाहिये । बार - बार अशुभ को हटाने तथा शुभ को स्थापित करने के अभ्यास से - अभ्यास की मन्दता - तीव्रता के अनुपात से अशुभ विचार नष्ट होने लगेंगे , उनका आना कम होता चला जायगा और शुभ विचार बार - बार आकर अपना स्थान बना लेंगे और बढ़ते रहेंगे । पर अशुभ को हटाने तथा शुभ को लाने के कार्य में असावधानी , आलस्य , प्रमाद कभी नहीं करना चाहिये । जब तक अशुभ का सर्वथा विनाश न हो जाय , तब तक अग्रि की छोटी सी चिनगारी भी बढ़कर सारे घर को भस्म कर देती है , इसी तरह , थोडा सा अशुभ विचार भी आश्रय पा जायगा तो उसे बढ़कर हमारे जीवन के शुभ को नष्ट करते देर नहीं लगेगी । अतः सावधान रहना चाहिये । 

संकल्पों का बार बार करें चिन्तन 

सावधानी ही साधना है । दिनभर प्रत्येक कार्य करते समय सावधानी के साथ देखते रहना - चाहिये । कभी किसी भी हेतु से अशुभ विचार या संकल्प मन में आ न जाय । शुभ विचार तथा संकल्पों का बार बार चिन्तन करते रहना चाहिये । अपने दोष - दुर्गुणों पर , अपनी मानस - पापचिन्ता धारा पर कभी दया नहीं करनी चाहिये । निरन्तर उसका समूलोच्छेद करने के लिये सचेष्ट रहना चाहिये । अपने दोष पर कभी क्षमा न करके प्रायश्चित्त के रूप में कुछ दण्ड देना चाहिये । जिससे दोष चिन्तन तथा दोष - सेवन में बराबर रुकावट हो । 

मानव जीवन का लक्ष्य

मनुष्य के जीवन का असली धन उसका सदाचार , उसके जीवन के सगुण , उसकी दैवी सम्पत्ति ही है । जो इस धन - सम्पत्ति को सुरक्षित रखने तथा बढ़ाने में नित्य सावधान तथा तत्पर नहीं है , वह सबसे बड़ा मूर्ख है ; क्योंकि वह अपनी बड़ी - से - बड़ी हानि कर रहा है । इसलिये इस शुभ धन - सम्पत्ति को नित्य बढ़ाते रहना चाहिये और जैसे व्यापारी अपना तलपट देखता है , वैसे ही प्रतिदिन रात्रि को सोने से पहले दिनभर का हिसाब - किताब देखना चाहिये । 

अशुभ - चिन्तन कितना कम हुआ , शुभ चिन्तन कितना अधिक हुआ - यह देखना चाहिये और जैसे धन का लोभी संतोष न करके उत्तरोत्तर धन की वृद्धि चाहता है , वैसे ही दैवी सम्पदा उत्तरोत्तर बढ़ती ही रहे , ऐसी तीव्र आकाङ्क्षा करके दृढ़ निश्चय करना चाहिये कि प्रभुकृपा से कल आज से कहीं अधिक दैवी सम्पत्ति की वृद्धि होगी , शुभ तथा शुद्ध चिन्तन बढ़ेगा । 


शुभ तथा शुद्ध चिन्तन बढ़ रहा है या नहीं , इसका पता लगता है हमारी क्रियाओं से हमारे कर्मो में , हमारे व्यवहार में , आचरण में उत्तरोत्तर सात्त्विकता आ रही है या नहीं , इसे देखते रहना चाहिये । यदि प्रभुकृपा से हमारे व्यवहार - आचरण - हमारे कर्म शुभ हो रहे हैं तो मानना चाहिये कि हमारा जीवन सच्चे सुखकी ओर - परमानन्दस्वरूप परमात्मा की ओर बढ़ रहा है । यही मानव - जीवन का लक्ष्य है ।

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