कैसे करें मां नव दुर्गा की स्तुति | Navdurga stuti

कैसे करें मां नव दुर्गा की स्तुति | Navdurga stuti


navdurga_stuti


किसी भी कार्य को करते समय स्वाभाविक रूप से कार्य के दौरान आने वाली मुश्किलों का भी ख्याल आता है । इसलिये शुभ परिणामों की प्राप्ति के साथ आकस्मिक नुकसान या परेशानियों के निवारणार्थ जरूरी तैयारी भी की जाती है । किन्तु फिर भी अचानक बदले हालात कठिनाई पैदा कर सकते हैं । इस समय मजबूत इच्छाशक्ति और बुलन्द हौसले के साथ संकटमोचन के लिये ईश्वर का स्मरण भी बहुत काम आता है । 

Navdurga stuti

जीवन में आने वाले ऐसे ही संकटों से रक्षा के लिये धर्मशास्त्रों में जगज्जननी देवी Navdurga के नौ दिव्य स्वरूपों अर्थात Navdurga stuti देवी के रक्षा कवच के रूप में हर संकट की घड़ी में रक्षक मानी गई है । अच्छा रहेगा कि पहले इस मन्त्र stuti का नवमी तिथि या नवरात्रि की शुभ घड़ी में 108 बार पाठ करके सिद्ध कर लिया जाये , तब इसका नित्य पाठ किया जाये । 
जिसकी प्रयोग विधि इस प्रकार है देवी Navdurga की प्रतिमा या चित्रपट की लाल पूजा सामग्रियों जैसे लाल चन्दन , लाल फूल , लाल वस्त्र या चुनरी , गौघृत का दीपक , गुग्गुल की धूप व नैवेद्य आदि अर्पित करके पूजा करें और यहाँ दी जा रही मन्त्र stuti का पाठ करें । 
मन्त्र stuti के अनन्तर धूप दीप से Navdurga माँ की आरती करें और विपत्तियों व संकटों से अपने घर परिवार की रक्षा की प्रार्थना करें । माँ Navdurga के ये नौ रूप मनुष्य को शांति , सुख , वैभव , निरोगी काया प्रदान करने वाले तथा समस्त भौतिक व आर्थिक इच्छाओं को पूर्ण करने वाले हैं । माँ अपने बच्चों को हर प्रकार का सुख प्रदान कर अपने आशीष की छाया में बिठाकर संसार के प्रत्येक दु : ख से दूर कर हर प्रकार से सुखी रखती हैं । 

माँ Navdurga के अमृत वचन 

वैवस्वत मनु के अट्ठाइस वे युग में मैं फिर आऊँगी । 
प्रकटूंगी नन्दगोप के घर यशुदा की सुता कहाऊँगी । 
बन विन्द्यवासिनी विन्द्याचल पर्वत का मान बढ़ाऊँगी , 
होंगे दो शुम्भ निशुम्भ और , उनका अभिमान मिटाऊँगी ।। 
अति उग्र प्रचण्ड रूप लेकर फिर पृथ्वी पर अवतारूँगी ।
तब वैप्रचित्त नामाधारी उद्दण्ड निशाचर मारूँगी । वे महादैत्य मेरे द्वारा दाँतों से पीसे जायेंगे । जिससे दाडिम की भांति दाँत रक्तिम आभा दिखलायेंगे । 
तब ' रक्तदन्तिका ' इस प्रकार मैं अपना नाम धराऊँगी । 
स्वर्ग में देव , धरती पर ऋषि मुनियों से पूजा पाऊँगी । 
सौ वर्ष न बरसेगा पानी भारी अकाल जब छायेगा ।
मुनियों की करुण प्रार्थना पर तब रूप अयोनिज आयेगा । 
सौ नयनों से अवलोकूँगी तो लोग शताक्षी गायेंगे । मेरे तन से उत्पन्न शाक सब जग के प्राण बचायेंगे । 
शाकम्भरी नाम तब पाऊँगी त्रिभुवन में यश छा जायेगा । 
फिर दुर्गा मैं कहलाऊँगी जब दुर्गम मारा जायेगा । 
फिर भीमरूप धर आऊँगी भीमादेवी कहलाऊँगी । 
नगराज निवासी असुरों से मुनियों के प्राण बचाऊँगी । 
जब अरुण दैत्य सब लोकों में भारी उत्पात मचायेगा । 
मैं रूप धरूँगी भ्रमरों का जिससे वह मारा जायेगा । 
तब भक्त भ्रामरी कह कह कर मेरी स्तुतियाँ गायेंगे । 
अपना अभीष्ट , अपनी रक्षा , पुरुषार्थ चतुष्टय पायेंगे । 
जब जब दानव - बाधा होगी तब तब मैं निश्चय आऊँगी । 
करके उनका संहार धरा पर धर्म ध्वजा फहराऊँगी ।

Post a Comment

0 Comments