कांगड़ा वाली माता (ब्रजेश्वरी देवी) हिमाचल प्रदेश | Kangra Fort and Kangra wali ki kahani in hindi

कांगड़ा वाली माता (ब्रजेश्वरी देवी) हिमाचल प्रदेश | Kangra Fort and Kangra wali ki kahani in hindi


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ब्रजेश्वरी देवी (नगरकोट कांगड़ा वाली)

यह स्थान जन-साधारण में नगर कोट कांगडेवाली देवी के नाम से विख्यात है। यहां दर्शन किए बिना यात्रा सफल नहीं मानी जाती है। यवनों के अनेकानेक आक्रमण होते रहे, फिर भी यह स्थान ब्रजेश्वरी देवी के प्रताप से अक्षत रहा। माना जाता है कि कांगड़ा में सती के वक्ष स्थल (स्तन) गिरे थे। यह शक्तिपीठ 51 शक्तिपीठों में से एक है। 

 कांगड़ा वाली मार्ग परिचय 

ज्वालामुखी से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर बसा हुआ हिमाचल राज्य का प्रमुख नगर कांगड़ा, केवल दो घंटे का बस मार्ग है। यहां से हिमाचल प्रदेश के सभी स्थानों के लिए बसें सुविधा से मिल जाती हैं। पठानकोट से जाने वाले यात्री लगभग तीन घंटे में कांगड़ा पहुंची जाते हैं।

 कांगड़ा वाली मंदिर की कथा (इतिहास) 

राजा सुशर्मा के नाम पर के नाम पर रखा गया "सुशर्मापुर" नगर कांगड़ा का अति प्राचीन नाम है, जिसका उल्लेख महाभारत में भी मिलता है। महमूद गजनवी के आक्रमण के समय इसका नाम "नगरकोट" था। "कोट" का अर्थ है किला अर्थात वह नगर जहां किला है - नगरकोट हुआ। "त्रिगर्त प्रदेश" कांगड़ा का महाभारत कालीन नाम है। कांगड़ा के शाब्दिक अर्थ है - कान + गढ़ अर्थात कान पर बना हुआ किला। पौराणिक कथा के अनुसार यह कान जलंधर दैत्य का है। 
कांगड़ा वाली की कथा 
जलंधर नामक दैत्य का कई वर्षों तक देवताओं से घोर युद्ध हुआ। जब विष्णु भगवान और शंकर जी की कपटी माया से परास्त जलंधर दैत्य युद्ध में जर्जरित होकर मरणासन्न हो गया तो दोनों देवताओं ने उसकी साध्वी पत्नी सती वृंदा के शाप के भय से जलंधर को प्रत्यक्ष दर्शन देकर मन चाहा वर मांगने को कहा। सती वृंदा (तुलसी) के आराध्य पति परमेश्वर जलंधर ने दोनों देवताओं की स्तुति करके कहा कि, हे सर्वशक्तिमान प्रभु यद्यपि आपने मुझे कपटी माया रच कर माया मारा है, इस पर भी मैं अति प्रसन्न हूं। आपके प्रत्यक्ष दर्शन से मुझ जैसे तामसी और अहंकारी दैत्य का उद्धार हो गया। 

मुझे कृपया यह वरदान दें कि मेरा यह पार्थिव शरीर जहां-जहां फैला है उतने परिणाम योजन में सभी देवी देवताओं और तीर्थों का निवास रहे। आपके श्रद्धालु एवं भक्त मेरे शरीर पर स्थित इन तीर्थों का स्नान, ध्यान, दर्शन, पूजन, दान, श्रद्धा आदि करके पुण्य लाभ प्राप्त करें। इसके पश्चात जलंधर ने विरासन में स्थित होकर प्राण त्याग दिए। इसी कथा के अनुसार शिवालिक पहाड़ियों के बीच 12 योजन के क्षेत्र में जलंधर पीठ फैला हुआ है जिसकी परिक्रमा में 64 तीर्थ मंदिर पाए जाते हैं। इनकी प्रदक्षिणा का फल चार धाम की यात्रा से कम नहीं है।
कांगड़ा वाली मंदिर के दर्शन 
राज्य के सर्वाधिक भव्य मंदिर के सुनहरी कलश दूर-दूर तक दृष्टिगोचर होते हैं। मंदिर के विशाल प्रांगण में महावीर, भैरव, शिव जी की सुंदर मूर्तियों के अतिरिक्त ध्यानू भक्त तथा देवी की प्रतिमाएं कलात्मक दृष्टि से प्रशंसनीय हैं। मंदिर के परकोटे में तारा देवी का छोटा मंदिर है, जो भूचाल आने पर भी नहीं गिरा था। माता के इस चमत्कार से इस स्थान की महत्ता और अधिक बढ़ गई है। इस मंदिर में आने वाला साधक माता के दर्शन करके अपनी सर्व मनोकामना पूर्ण करता है।

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