देवी कवच | Devi Kavach In Hindi

देवी कवच | Devi Kavach In Hindi

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मार्कण्डेय जी ने कहा- " हे पितामह ! जो साधन संसार में अत्यंत गोपनीय हैं , जिनसे मनुष्य मात्र की रक्षा होती है तथा आपने अब तक जिसे किसी से भी प्रकट नहीं किया है , वह साधन मुझे बताइए । 


Devi Kavach In Hindi

ब्रह्माजी ने कहा- " हे ब्रह्मन् ! सम्पूर्ण प्राणियों का कल्याण करने वाला Devi Ka Kavach अत्यन्त गोपनीय है , हे महामुने ! उसे सुनिए । 

हे मुने ! दुर्गा की नव शक्तियों में पहली शक्ति का नाम शैलपुत्री है । दूसरी शक्ति का नाम ब्रह्मचारिणी है । तीसरी शक्ति का नाम चन्द्रघण्टा है । चौथी और पाँचवीं शक्ति का नाम क्रमश : कूष्माण्डा और स्कन्दमाता है । छठी शक्ति का नाम कात्यायनी है । साँतवी , आठवीं और नवीं शक्तियों के नाम क्रमशः कालरात्री , महागौरी और सिद्धिदात्री है । 

जो मनुष्य युद्ध क्षेत्र में शत्रुओं से घिर गया हो तथा अत्यन्त कठिन विपत्ति में फँस गया हो , अग्नि में जल रहा हो , यदि वह भगवती दुर्गा की शरण का सहारा ले ले तो उसका कभी युद्ध या संकट में कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता है । उसे कोई विपत्ति घेर नहीं सकती और न उसे कोई शोक , दुःख तथा भम्र  की प्राप्ति ही हो सकती है । जो प्राणी भक्ति पूर्वक भगवती का स्मरण करते हैं , उनका अभ्युदय होता रहता है । हे भगवती ! जो भी मानव आपका स्मरण करते हैं , निश्चय ही आप उनकी रक्षा करती हो । 

प्रथम चामुण्डा देवी प्रेत के वाहन पर आरूढ़ रहती हैं । वाराही महिष के आसन पर रहती हैं । एन्द्री का वाहन ऐरावत हाथी है , वैष्णवी का वाहन गरुड़ है । माहेश्वरी बैल के वाहन पर तथा कौमारी मोर के वाहन पर विराजमान हैं । श्री विष्णु पत्नी भगवती के हाथों में कमल है तथा वे कमल के आसन पर निवास करती हैं । श्वेत वर्णं वाली ईश्वरी वृष पर सवार हैं । सरस्वती सम्पूर्ण आभूषणों से युक्त हैं तथा वे हंस पर विराजमान रहती हैं । 

अनेक आभूषणों तथा रत्नों से देदीप्यामान सभी देवियाँ सभी योग - शक्तियों से युक्त होती हैं । इनके अलावा और भी देवियाँ हैं जो दैत्यों विनाश के लिए तथा भक्तों की रक्षा के लिए क्रोध युक्त होकर रथ में सवार हैं तथा इनके हाथों में शंख , चक्र , गदा , शक्ति , हल , मूसल है । खेटक , तोमर , फरशु , पाश , भाला , त्रिशूल तथा उत्तम शनि धनुष आदि अस्त्र - शस्त्र विराजमान हैं , जिनसे देवताओं की रक्षा होती है तथा Devi  जिन्हें दैत्यों की देहनाश तथा भक्तों के मन में भयनाश के लिए धारण करती हैं । महाभय का विनाश करने वाली , महानबल , महाघोर कर्म तथा महान उत्साह से सुसम्पन्न , हे महारौद्रे ! तुम्हें नमस्कार है । 

हे शत्रुओं का भय बढ़ाने वाली Devi ! तुम मेरी रक्षा करो । दुर्घर्ष तेज के कारण मैं तुम्हारी ओर देख भी नहीं सकता । एन्द्रीशक्ति पूर्व दिशा में मेरी रक्षा करें तथा अग्नि देवता की आग्नेय शक्ति अग्नि कोण में हमारी रक्षा करें । वाराही शक्ति दक्षिण दिशा में , खड्गधारिणी नैऋत्य कोण में , वारुणी शक्ति पश्चिम दिशा में तथा मृग के ऊपर सवार रहने वाली शक्ति हमारी रक्षा करें । 

कौमारी उत्तर दिशा में , ईश्वरी शक्ति ईशान कोण में , ब्रह्माणी शक्ति ऊपर तथा वैष्णवी शक्ति नीचे हमारी रक्षा करें । चामुण्डा देवी दसों दिशाओं में हमारी रक्षा करें । आगे जया पीछे विजया हमारी रक्षा करें । बाएँ भाग में अजिता , दाहिने भाग में अपराजिता , शिखा में उद्योतिनी तथा मस्तक की उमा हमारी रक्षा करें । 

ललाट में मालाधारी , दोनों भ्रूवों में यशस्विनी , भ्रूवों के मध्य में त्रिनेत्रा तथा नासिका में यमघण्टा हमारी रक्षा करें । दोनों नेत्रों के बीच में शङ्खिनी , दोनों कानों के मध्य में द्वारवासिनी , कपोलों की कालिका , कर्ण के मूल भाग में शांङ्करी हमारी रक्षा करें ! 

नासिका के बीच का भाग सुगंधा , ओष्ठ में चर्चिका , अधर में अमृत कला तथा जीभ में सरस्वती हमारी रक्षा करें । कौमारी दाँतों की , चण्डिका कण्ठ- प्रदेश की , चित्रघण्टा गले की तथा महामाया तालु की रक्षा करें । कामाक्षी ठोढ़ी की , सर्वमंगला वाणी की , भद्रकाली ग्रीवा की तथा धनुष को धारण करने वाली रीढ़ प्रदेश ( कमर ) की रक्षा करें । 

कण्ठ से बाहर नील ग्रीवा और कण्ठ की नली में नलकूवरी , दोनों कंधों की खङ्गिनी तथा वन को धारण करने वाली दोनों बाहु की रक्षा करें । दोनों हाथों में दंड को धारण करने वाली अम्बिका अंगुलियों की रक्षा करें । शूलेश्वरी नखों की तथा कुलेश्वरी कुक्षि प्रदेश की रक्षा करें । महादेवी दोनों स्तनों की , शोक को दूर करने वाली मन की रक्षा करें । ललिता देवी हृदय में तथा शूलधारिणी उदर की रक्षा करें । 

नाभि की कागिनी तथा गुह्य भाग की गुहोश्वरी रक्षा करें । कामिका तथा पूतना लिंग की तथा महिषवाहिनी गुदा की रक्षा करें । भगवती कटि प्रदेश तथा विन्ध्यवासिनी घुटनों की रक्षा करें । महाबला देवी दोनों पिंडलियों की रक्षा करें । नारसिंही दोनों पैर के घुट्टियों की , तेजसी देवी दोनों पैर के पिछले भाग की , श्री देवी पैर की उंगलियों की तथा तलवासिनी पैर के तलवों की रक्षा करें । 

दंष्ट्राकराली नखों की , ऊर्ध्वकेशिनी देवी केशों की , कावेरी रोमछिन्द्रों की , वागीश्वरी त्वचा की रक्षा करें । कालरात्रि आँतों की तथा मुकुटेश्वरी पित्त की रक्षा करें ।

ब्रह्माणी शुक्र की , छत्रेश्वरी छाया की , धर्मधारिणी देवी अहंकार , मन तथा बुद्धि की रक्षा करें । अभेद्या जोड़ों की रक्षा करें वजहस्ता देवी प्राण , अपान , व्यान , उदान तथा समान वायु की , कल्याण सोभना हमारे प्राणों की रक्षा करें । नारायणी देवी रस , रूप , गन्ध , शब्द तथा स्पर्श , सत्व , रज एवं तमोगुणों की रक्षा करें । वाराही आयु की , वैष्णवी धर्म की , चकिणी यश और कीर्ति की , लक्ष्मी धन और विद्या की रक्षा करें । 

हे इंद्राणी ! तुम मेरे कुल की , हे चण्डिके ! तुम हमारे पशुओं की रक्षा करो । महालक्ष्मी पुत्रों की तथा भैरवी देवी पत्नी की रक्षा करें । सुपथा हमारे पथ की , क्षेमकरी मार्ग की रक्षा करें । राजद्वार पर महालक्ष्मी तथा सब ओर व्याप्त रहने वाली विजया भय से हमारी रक्षा करें । 

Benefits of Devi Kavach In Hindi

हे देवी ! इस Devi Kavach में जो स्थान छूट गया हो उसकी रक्षा आप स्वयं करें । यदि मनुष्य अपना कल्याण चाहे तो वह Devi Kavach के पाठ के बिना एक पग भी नहीं चल सकता । Devi Kavach का पाठ करने वाला व्यक्ति अतुल ऐश्वर्य प्राप्त करता है । उसे युद्ध में कोई नहीं हरा सकता । तीनों लोकों में उसकी पूजा होती है । यह Devi Ka Kavach देवताओं के लिए भी दुर्लभ है । 

Devi Kavach का पाठ करने वाले व्यक्ति की असमय मृत्यु नहीं होती । वह सौ वर्ष से भी अधिक समय तक जीवित रहता है । इस Devi Kavach का पाठ करने से सिर में सिकरी , चेचक आदि रोग नष्ट हो जाते हैं । स्थावर विष , जंगम विष , कृत्रिम विष आदि नष्ट हो जाते हैं । 

मारण , मोहन तथा उच्चाटन आदि किए गए अभिचार यंत्र , मंत्र , पृथ्वी तथा आकाश में विचरण करने वाले ग्राम देवता , जल में पैदा होने वाले क्षुद्र देवता आदि Devi Kavach के पाठ करने वाले मनुष्य को देखते ही नष्ट हो जाते हैं । 

Devi Kavach को धारण करने वाले पुरुष को राजा के द्वारा सम्मान प्राप्त होता है । Devi Kavach मनुष्य के तेज में वृद्धि करता है । उसकी कीर्ति इस संसार में प्रतिदिन बढ़ती रहती है । जो इस Devi Kavach का पाठ कर सप्तसती का पाठ करता है , उसकी पुत्र - पौत्रादि संतति चिरकाल तक विद्यमान रहती है । इस Devi Kavach का पाठ करने वाला सुंदर रूप को पाकर सदाशिव के साथ आनन्द पाता है । 

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