युद्ध में रावण के पुत्रों का वध | मेघनाद के ब्रह्मास्त्र से हुए लक्ष्मण मूर्छित

युद्ध में रावण के पुत्रों का वध | मेघनाद के ब्रह्मास्त्र से हुए लक्ष्मण मूर्छित 



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रावण के पुत्रों का वध 

रावण को कुंभकर्ण की शक्ति पर बहुत विश्वास था । वह उसकी पराजय के विषय में सोच भी नहीं सकता था । राम द्वारा कुंभकर्ण को मार देने से रावण भयभीत सा हो गया तथा शोकाकुल होकर रोने लगा । वह कुंभकर्ण की वीरता का वर्णन करके विलाप करने लगा । 

रावण के पुत्र उसके इस विलाप को सुनकर व्याकुल हो उठे । उन्होंने रावण को इतना शोकाकुल कभी नहीं देखा था । पिता की यह दशा देखकर त्रिशिरा , देवांतक और नरांतक क्रोधित हो उठे । उन्होंने रावण को धैर्य देते हुए कहा कि हम राम और लक्ष्मण दोनों को पराजित करके पकड़ लाएंगे । 

पुत्रों के वचन सुनकर रावण कुछ शान्त हुआ । उसने उन्हें आशीर्वाद देकर युद्ध के लिए भेज दिया । रावण ने अपने भाई महापार्श्व और महोदर को भी पुत्रों के साथ युद्ध - स्थल भेजा । युद्ध के मैदान में पहुंचकर नरांतक ने भाले से अंगद पर आक्रमण कर दिया । 

अंगद की छाती पर लगकर भाला टूट गया । तब नरांतक ने अंगद के साथ मल्ल - युद्ध आरम्भ किया । नरांतक अंगद पर घूसे बरसाने लगा । इससे अंगद बेहोश होकर गिर गया । थोड़ी ही देर में होश में आने पर उसने नरांतक की छाती पर कसकर  घुसा मारा । नरांतक उस आघात को सहन नहीं कर सका और मर गया । 

नरांतक के मरने पर महोदर , देवांतक और त्रिशिरा ने क्रोध में भरकर अन्य राक्षसों सहित अंगद को घेर लिया । वे उस पर आक्रमण करने लगे । अंगद को घिरा देखकर हनुमान और नल उसकी सहायता के लिए देवांतक से युद्ध करने लगे । 

अन्त में देवांतक मारा गया । इसके बाद हनुमान ने त्रिशिरा को भी मार डाला । नल ने महोदर का वध कर दिया । महापार्श्व को ऋषभ नामक वानर ने मार दिया । इन सब राक्षसों के मारे जाने पर अतिकाय नामक विशाल शरीर वाला राक्षस युद्ध करने पहुंचा । 

अतिकाय कुंभकर्ण के समान अतिबलशाली था । उसे देखते ही वानर सेना में भगदड़ मच गई । उन्होंने समझा कि कुंभकर्ण फिर से जीवित हो गया है । अतिकाय राक्षस रथ को दौड़ाता हुआ राम की ओर चला किन्तु मार्ग में उसे लक्ष्मण ने रोक लिया । अतिकाय ने कहा कि तुम अभी बालक हो । मुझे राम से युद्ध करने के लिए जाने दो । लक्ष्मण ने उसे ललकारते हुए कहा कि पहले बालक से ही युद्ध करके देख लो । इतना कहकर लक्ष्मण उस पर बाण चलाने लगा । 

अतिकाय ने ब्रह्मा से मिली शक्तियाँ व दिव्य कवच निकाला । कवच से टकराकर लक्ष्मण के बाण बेकार होकर गिरने लगे । यह देखकर लक्ष्मण ने अतिकाय के घोड़ों और सारथी पर बाण चलाकर उन्हें मार डाला । 

उसका रथ भी टूट गया । क्रोध में भरे अतिकाय ने तीक्ष्ण बाणों के प्रहार से लक्ष्मण को बुरी तरह घायल कर दिया । तब लक्ष्मण उस पर अमोघ बाण चलाने लगा किन्तु उन बाणों का कोई भी असर न पड़ा । अन्त में कोई उपाय न देखकर लक्ष्मण ने उस पर ब्रह्मास्त्र छोड़ दिया । ब्रह्मास्त्र लगते ही अतिकाय का सिर कटकर दूर जा गिरा । राक्षस - सेना पराजित होकर लंका लौट गई । वानर सेना लक्ष्मण की जय - जयकार करने लगी ।

मेघनाद का युद्ध - कौशल 

पुत्रों का भी अंत देखकर रावण टूट गया । अब धैर्य उसका साथ छोड़ रहा था । उसे पराजय पल - प्रतिपल निकट आती प्रतीत हो रही थी । विभीषण की कही बातें उसे अब सत्य लगने लगीं । वह पछता रहा था कि यदि समय रहते वह विभीषण की बातें मान लेता तो आज ये दिन देखने को न मिलता निराशा में डूबे रावण के मन में संसार के प्रति कोई आकर्षण न रहा । वह सीता को अपहरण करने पर पछता रहा था । सीता के प्रति भी उसके मन में आकर्षण न रहा था । उसमें लंका का राजा बने रहने की इच्छा भी न रही । 

मेघनाद पिता को समझाकर पुनः उत्साहित करने लगा । उसने रावण को आश्वासन दिया कि वह राम - लक्ष्मण को पराजित कर और उन्हें मारकर विजयी होगा । रावण अपने पुत्र मेघनाद के बाहुबल और युद्ध - कौशल से सुपरिचित था । अतः उसे पूर्ण विश्वास हो गया कि मेघनाद युद्ध में अवश्य विजयी होगा । उसकी निराशा , एक बार फिर आशा में बदल गई । उसने राक्षस - सेना को एकत्रित होने का आदेश दिया । 

लंका के प्रत्येक द्वार पर अतिरिक्त सुरक्षा  प्रबंध कर दिए गए । उसने अशोक - वाटिका में पहरा भी बढ़ा दिया । सीता पर भी निगरानी अधिक करा दी । मेघनाद दिव्य अस्त्र - शस्त्रों से सुसज्जित होकर युद्ध - स्थल की ओर चल पड़ा । मेघनाद के नेतृत्व से राक्षस सेना ने अपना खोया हुआ मनोबल फिर से पा लिया । वे पहले से भी अधिक उत्साह के साथ वानर सेना पर टूट पड़े ।  मेघनाद ने मुख्य वानर योद्धाओं को घायल कर दिया । वानर बड़े - बड़े वृक्ष उठाकर उस पर फेकते  किन्तु वह बाणों से उन्हें बीच में ही काट देता ।

लक्ष्मण का मूर्छित होना

अब  मेघनाद मायावी युद्ध करने लगा और अदृश्य हो गया। वह लक्ष्मण पर बाणों की वर्षा  किए जा रहा था और स्वयं दिखाई नहीं दे रहा था । इसी बीच उसने लक्ष्मण पर ब्रह्मास्त्र चला दिया  जिससे लक्ष्मण मूर्छित होकर गिर गया। मेघनाद उसको उसी दशा में छोड़कर लंका वापस आ गया । राम और वानर सेना लक्ष्मण को मूर्छित देखकर शोक में डूब गए । सभी बहुत अधिक चिन्तित थे । 

तभी विभीषण ने धैर्य बंधाया कि लक्ष्मण जल्दी हो होश में आ जाएंगे । ये ब्रह्मास्त्र का मान रखने के लिए  मूर्छित हो गए हैं । इसके बाद विभीषण ने जामवंत के पास जाकर सारा हाल सुनाया । जामवंत ने पूछा कि हनुमान तो सुरक्षित है ? यदि हनुमान जीवित है तो हम भी सुरक्षित है । विभीषण ने हनुमान की कुशलता के विषय में बताया और उन्हें बुलवाया । 

हनुमान आए और सुषेण वैद्य को भी वहाँ लाया गया । सुषेण वैद्य ने हनुमान को कैलाश पर्वत से संजीवनी बूटी , विशल्यकरणी , सुवर्णकरणी और संधानी नाम की जड़ी - बूटियां लाने के लिए कहा । जामवंत ने समझाया कि ये जड़ी - बूटियाँ दूर से ही चमकती हुई दिखाई देती है । इन जड़ी - बूटियों के प्रयोग से लक्ष्मण होश में आ जाएंगे ।

लक्ष्मण का होश में आना 

हनुमान तत्काल उड़ान भरकर कैलाश पर्वत पर पहुंचे । वहां उन्हें सभी जड़ी - बूटियाँ चमकती दिखाई दी । इस कारण से वे जामवंत द्वारा बताई जड़ी - बूटियों को न पहचान सके । हनुमान पर्वत के शिखर को ही उखाड़कर ले आए । इन जड़ी - बूटियों की सुगंध पाकर लक्ष्मण की मूर्च्छा  दूर हो गई और वे होश में आ गए । वानर सेना में खुशी का वातावरण छा गया राम भी बहुत प्रसन्न हुए ।

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