दूसरा नवरात्र कौन सी देवी का है? दूसरा नवरात्र माँ ब्रह्मचारिणी व्रत कथा

दूसरा नवरात्र कौन सी देवी का है? दूसरा नवरात्र माँ ब्रह्मचारिणी व्रत कथा 


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दूसरा नवरात्र


        नवरात्र के दूसरे दिन माँ ब्रह्मचारिणी जी की पूजा की जाती है  माँ दुर्गा नव रूपों में दूसरा रूप माँ ब्रह्मचारिणी का है। जिनमें ब्रह्म शब्द का अर्थ तपस्या से है। ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप अत्यंत भव्य है, साधक इस दिन अपने मन को माता के चरणों में लगाता है व बड़े ही श्रद्धा भाव से मातारानी की पूजा अर्चना करता है।

माँ ब्रह्मचारिणी व्रत कथा


             इनके दाहिने हाथ में जप करने वाली माला एवं कमण्डल बाएँ हाथ में है। अपने पूर्व जन्म में जब ये हिमालय के घर पुत्री रूप में जन्म लिया था, तब नारद के कहने पर इन्होंने भगवान भोलेनाथ जी को पाने के लिए कठिन तपस्या की थी। इसी दुष्कर तपस्या के कारण इन्हें तपश्चारिणी अर्थात ब्रह्मचारिणी नाम से जाना जाता है। 

            इन्होंने एक हज़ार वर्ष तक केवल फल खाकर व्यतीत किए और सौ वर्ष तक केवल शाक पर निर्भर रहीं। उपवास के समय खुले आकाश के नीचे वर्षा और धूप के विकट कष्ट सहे, इसके बाद में केवल ज़मीन पर टूट कर गिरे बेलपत्रों को खाकर तीन हज़ार वर्ष तक भगवान शंकर की आराधना करती रहीं। कई हज़ार वर्षों तक वह निर्जल व्रत करती रहीं।

            पत्तों को भी छोड़ देने के कारण उनका नाम 'अपर्णा' भी पड़ा। इस कठिन तपस्या के कारण ब्रह्मचारिणी देवी का पूर्वजन्म का शरीर एकदम क्षीण हो गया था। उनकी यह दशा देखकर उनकी माता मैना देवी अत्यन्त दुखी हो गयीं। उन्होंने उस कठिन तपस्या विरत करने के लिए उन्हें आवाज़ दी उमा, अरे नहीं। तब से देवी ब्रह्मचारिणी का पूर्वजन्म का एक नाम 'उमा' पड़ गया था। 

            उनकी इस तपस्या से तीनों लोकों में हाहाकार मच गया था। देवता, ॠषि, सिद्धगण, मुनि सभी ब्रह्मचारिणी देवी की इस तपस्या को अभूतपूर्व पुण्यकृत्य बताते हुए उनकी सराहना करने लगे। अन्त में ब्रह्मा जी ने कहा- 'हे देवी । आज तक किसी ने इस प्रकार इतनी अधिक कठोर तपस्या नहीं की थी। तुम्हारी सर्वमनोकामनाएं पूर्ण होगी। भगवान चन्द्रमौलि शिव जी तुम्हें पति रूप में मिलेंगे। अब तुम तपस्या को पूरी करके घर लौट जाओ।'

           माँ ब्रह्मचारिणी का यह स्वरूप भक्तों को अनन्त अधिक फल देने वाला है। माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा करने से मनुष्य में तप, त्याग, वैराग्य, सदाचार व संयम की वृद्धि होती है। सर्वत्र सिद्धि प्राप्त होती है, नवरात्र के दूसरे दिन  माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा अर्चना की जाती है। इस दिन साधक का मन स्वाधिष्ठान चक्र में होता है। इस चक्र में अवस्थित मन वाला योगी उनकी कृपा और भक्ति प्राप्त करता है। जीवन के कठिन संघर्षों में भी उसका मन कर्त्तव्य-पथ से विचलित नहीं होता। माँ ब्रह्मचारिणी देवी की कृपा से उसे सर्वत्र सिद्धि और विजय प्राप्त होती है। जो भी साधक अपने मन से  श्रद्धा भाव और निष्ठा से मां ब्रह्मचारिणी जी की पूजा अर्चना करता है उसकी सर्व मनोकामनाएं पूर्ण होती है

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