शिव के अवतार हनुमान द्वारा लंका दहन | सम्पूर्ण रामायण

शिव के अवतार हनुमान द्वारा लंका दहन | सम्पूर्ण रामायण



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हनुमान द्वारा लंका दहन

रावण का आदेश पाकर सैनिकों ने हनुमान की पूंछ पर तेल से भिगोए कपड़े लपेटने शुरू किए । पूंछ पर कपड़ों के ढेर लपेटने के बाद हनुमान को नगर में घुमाया जाने लगा । स्त्रियो , पुरुषों और बच्चो का झुंड उनके पीछे - पीछे चल रहा था । लंकावासियों के लिए यह सब एक तमाशा बन गया था । हनुमान को भी लंका को देखने का सुंदर अवसर मिल गया था । पूरे नगर में घुमाने के पश्चात् राक्षसों ने उनकी पूंछ में आग लगा दी । आग लगते ही हनुमान अपने शरीर को अत्यन्त छोटा कर राक्षसों को पकड़ से छूट गए । 

अब वे एक भवन से दूसरे भवन पर कूदते हुए सब जगह आग लगाने लगे । देखते ही देखते लंका धूं - धूं करके जलने लगी । पूरी लंका नगरी में हाहाकार मच गया । सभी लोग जान बचाने के लिए इधर - उधर भागने लगे । पूरी की पूरी लंका में आग और धुंए के अलावा और कुछ भी नजर नहीं आ रहा था । हनुमान ने समुद्र में छलांग लगाई तथा पूँछ में लगी आग को बुझाया । 

अचानक हनुमान को सीता की चिंता हुई । लंका नगरी जल रही थी और सीता भी वहीं थीं । हनुमान की नजर अपनी पूँछ पर पड़ी । उन्होंने पाया कि पूँछ का एक बाल तक न जला था । वे निश्चित हो गए कि जब उनकी पूँछ तक नहीं जली तो सीता को भी आँच नहीं आई होगी । वे तुरन्त सीता के पास पहुंचे । उन्होंने सीता को धैर्य रखने के लिए कहा । उसके बाद हनुमान ने प्रणाम करके सीता से विदा ली । 

हनुमान सीता का पता लगाकर लंका से वापस लौटे

हनुमान लंका से लौटने के लिए सबसे पहले अरिष्ट पर्वत पर चढ़ गए । वे समुद्र के उत्तरी किनारे की ओर उड़ चले । वहाँ हनुमान के लौटने की प्रतीक्षा में अंगद , जामवंत , नल और नील चिंतित बैठे थे । हनुमान की गर्जना ने उन्हें चौका दिया । वे सब वृक्षों और पर्वत शिखरों पर चढ़कर दक्षिण दिशा की ओर देखने लगे । तभी दूर से तेज रोशनी निकट आती दिखाई दी । टक - टकी लगाकर देखने पर वे हनुमान को पहचान गए । हनुमान के आने पर सबके उदास मुखों पर खुशी की लहर दौड़ गई । हनुमान राम और सुग्रीव की जय - जयकार करते हुए आकाश से धरती पर उतर आए । प्रसन्नतापूर्वक सभी ने उनको घेर लिया । हनुमान अंगद और जामवत के गले मिले । सभी वानरों ने उन पर फूल बरसाए । हनुमान ने उन्हें लंका में प्रवेश से लेकर लंका - दहन तक की संपूर्ण कथा सुनाई । अंगद ने कहा कि हमे तुरंत चलना चाहिए क्योकि राम और सुग्रीव हमारी प्रतीक्षा में होंगे । 

मार्ग में हनुमान ने रावण को अत्यन्त पराक्रमी , वीर , बुद्धिमान और बलशाली राजा बताया । उन्होंने कहा कि उसे हराना आसान नहीं है । सभी सुग्रीव के मधुवन में पहुंचे । अंगद ने भूख से व्याकुल वानरों को फल और मधु खाने की अनुमति दे दी । वानरों ने फल खाकर और भालुओं ने मधु पीकर भूख मिटाई । उस उपवन का रक्षक सुग्रीव का मामा दधिमुख था । 

यह सब देखकर दधिमुख ने सुग्रीव के पास जाकर अंगद की शिकायत करते हुए कहा कि वानरो और भालुओं ने मधुवन को तहस - नहस कर दिया है । सुग्रीव समझ गया कि अंगद और उसके दल को सीता का पता लग गया है तभी वानरो व भालुओं को फल खाने की अनुमति दी गई है । उसने दधिमुख से कहा कि उन्हें तुरंत मेरे पास भेजो । सुग्रीव के पास पहुंचकर अंगद और जामवंत ने सुग्रीव को प्रणाम किया और सीता का पता लग जाने का शुभ समाचार सुनाया । हनुमान की वीरता के बारे में सुनकर सुग्रीव ने उन्हें गले से लगा लिया और कहा कि तुमने मेरी लाज रख ली । 

राम को दिया सीता के मिलने का शुभ समाचार

इसके बाद सुग्रीव वानरो सहित राम के पास पहुंचा । उसने राम व लक्ष्मण को हनुमान के पराक्रम और बुद्धि - कौशल के विषय में बताया तथा सीता के मिलने का शुभ समाचार भी सुनाया । सीता की कुशलता जानकर राम का हृदय पुलकित हो उठा । उन्होंने उठकर हनुमान को गले से लगा लिया और अपना आभार प्रकट किया । हनुमान ने सीता के कष्टमय जीवन के विषय में विस्तार से राम को बताया और उनका संदेश सुनाया कि यदि आप दो महीने तक वहाँ नहीं पहुंचे तो रावण उनका वध कर देगा । 

उसके पश्चात् हनुमान ने सीता जी द्वारा दी गई चूड़ामणि राम को दी । श्रीराम उस चूड़ामणि को पहचान गए थे । चूड़ामणि लेकर राम बहुत अधिक भावुक हो उठे । उनकी आँखों से अश्रुओं की धाराएं बहने लगीं । राम ने सीता के बारे में हनुमान जी से बहुत से प्रश्न पूछे क्योकि वे सीता की कुशलता के विषय में सोच - सोचकर बहुत अधिक परेशान व व्याकुल थे । हनुमान ने सुझाव दिया कि अब बिना देरी किए रावण के विरुद्ध युद्ध की तैयारी कर देनी चाहिए । सीता को कष्टों से छुटकारा दिलाना चाहिए । राम ने पूरी स्थिति से परिचित होकर सुग्रीव से गंभीरतापूर्वक युद्ध की तैयारी करने के लिए कहा । 

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