चामुंडा देवी का मंदिर, चामुंडा देवी द्वारा चंड-मुंड राक्षसों का विनाश कैसे हुआ?, कैसे पड़ा मां काली का नाम चामुंडा?

चामुंडा देवी का मंदिर, चामुंडा देवी द्वारा चंड-मुंड राक्षसों का विनाश कैसे हुआ?, कैसे पड़ा मां काली का नाम चामुंडा?


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चामुंडा देवी का मंदिर व उसकी मान्यता

मां शक्ति के 51 शक्तिपीठों में एक पीठ  चामुंडा देवी  का है जिसकी  बहुत मान्यता है। यह कांगड़ा जिले में स्थित है, जो हिमाचल प्रदेश  में पड़ता है। यह  बेकर नदी के तट पर स्थित है। यह शिव और शक्ति का स्थान है, जिसको चामुंडा देवी नंदीकेश्वर धाम से जाना जाता है। बाणगंगा के तट पर स्थित यह उग्र-सिद्ध पीठ प्राचीन काल से ही तप, योगियो, साधको व तांत्रिको के लिए एकांत-शांत एवं प्राकृतिक शोभा से युक्त स्थान है। बाईस ग्रामों की शमशान भूमि महाकाली चामुंडा देवी के रूप में मंत्र विद्या और सिद्धि का वरदायी छेत्र माना गया है, जहां भूतभावन भगवान आशुतोष शिवशंकर मृत्यु, विनाश और शवहारी विसर्जन का रूप लिए - साक्षात मां चामुंडा देवी के साथ बैठे हैं। यहां भक्तजन शिव + शक्ति मंत्रों से पूजन, दान तथा श्राद्ध पिंडदान आदि करते हैं। बाण गंगा मे स्नान करके शतचंडी पाठ सुनना तथा सुनाना श्रेष्ठ है। पहले यहां बली भी दी जाती थी। इसके अतिरिक्त कुमारी - पूजन किया जाता है। रुद्राभिषेक करके गंगा लहरी से शंकर जी की स्तुति करते हैं।

चामुंडा देवी मंदिर जाने का मार्ग

पठानकोट से रेल की छोटी लाइन जो पपरोला जाती है, उस रेल में बैठकर यात्री चामुंडा देवी रेलवे स्टेशन पर उतर सकते हैं। चामुंडा देवी रेलवे स्टेशन मलां में बना है। यहां से मंदिर लगभग चार किलोमीटर की दूरी पर है। मलां से चामुंडा देवी तक बस मिल सकती है। अन्यथा यात्री पहाड़ी दृश्य देखते हुए पैदल ही आधे घंटे में पहुंच जाते हैं। ज्वालामुखी से कांगड़ा दो घंटे का बस मार्ग है। कांगड़ा से मलां केवल डेड घंटे का बस मार्ग है। पठानकोट से जिला कांगड़ा की राजधानी धर्मशाला होकर, सीधी बसें भी चामुंडा देवी जाती हैं। गगल में हवाई अड्डे से 28 किलोमीटर की दूरी पर चामुंडा देवी का मंदिर स्थित है।

चामुंडा देवी की कथा (चंड-मुंड राक्षसों का विनाश) 

चामुंडा देवी का पौराणिक कथानक एवं इतिहास दुर्गा सप्तशती के सप्तम अध्याय में स्पष्ट हुआ है। मंदिर की प्राचीन परंपरा एवं भौगोलिक स्थिति से स्पष्ट होता है कि यही वह स्थान है जहां चंड-मुंड राक्षस देवी से युद्ध करने आए और काली रूप धारण कर देवी ने उनका वध किया। देवी कालिका ने जब चंड और मुंड के सिर उसको उपहार स्वरूप भेंट किए तो मां अंबा ने प्रसन्न होकर वरदान दिया कि तुमने चंड-मुंड का वध किया है, अतः संसार में तुम "चामुंडा देवी" के नाम से विख्यात हो जाओगी।

अपने राजा  शुम्भ-निशुम्भ की आज्ञा पाते ही चंड-मुंड आदि आयुधो से सुसज्जित होकर चतुरंगिणी सेना के साथ चल पड़े। वहां पहुंचकर उन्होंने देखा कि हिमालय की ऊंची स्वर्ण की चोटी पर सिंह पर देवी बैठी है और मंद मंद हंस रही है। इस प्रकार उसे देख कर पकड़ने की चेष्टा करने लगे किसी ने धनुष चढ़ा लिया, किसी ने तलवार संभाल ली एवं कितने ही देवी के पास पहुंच गए। तब अंबिका जी उन शत्रुओ के प्रति क्रोध में आ गई। उस समय क्रोध के कारण उनका मुख काला हो गया, देवी के माथे पर कुटिल भौहे तन गई।तब तो भयानक मुख वाली देवी तलवार तथा पास लिए प्रकट हो गई। 

उसने अद्भुत सा अटठाग धारण किया हुआ था, नरमुंडा-माला शोभित थी, चीते के चर्म की साड़ी पहने थी, शरीर का मांस सूखा दिखाई देता था, अत्यंत भयानक रुप था, मुख को विस्तार से खोल रखा था, लपलपाती हुई जिह्वा और भी भयानक थी, धंसी हुई लाल-लाल आंखें थी, गर्जना से सभी दिशाओं को भर दिया था। वह बड़े वेग से दैत्य सेना पर टूट पड़ी, बड़े-बड़े असुरों को मारती हुई उनका भक्षण करने लगी। उन पार्श्व रक्षकों को, अंकुश धारियों को, महावत तथा योद्धाओं को, घंटों के साथ कितने हाथियों को एक ही साथ में पकड़कर मुंह में डालने लगी। वैसे ही घोड़ों के साथ रथो को एवं सारथियों को भी मुंह में डाल-डाल कर अत्यंत भयानक रुप से दांतो से उन्हें चबाती जाती थी। किसी के केश पकड़ लेती, तो किसी की गर्दन दबा लेती, किसी को पैरों से दबोच देती, तो किसी को छाती से धकेल कर मार गिराती।

असुरों के द्वारा छोड़े हुए अस्त्र-शास्त्रों को मुंह में पकड़ती जाती, और दांतो से पीसती जाती। काली जी ने इस प्रकार बलवान दुरात्मा असुरों की वह सेना कुचल डाली, भक्षण कर डाली, कितने ही असुरो को मार पीट दिया। उस देवी ने कुछ तो तलवार से काट गिराए, कुछ एक हुंकार से ही भस्म कर दिए, और कुछ को दांतो से कुचल दिए। क्षण भर में असुरों कि वह सारी सेना मार पीट कर गिरा दी। यह देख चंड उस भयानक काल की और दौड़ा, इधर महा असुर मुंड ने भी महा भयंकर बाणों की वर्षा से एवं सहस्त्रों चलाए हुए चक्रों द्वारा उस भयानक आंखों वाली देवी को ढांप दिया। वे अनेकों चक्र देवी के मुंह में प्रवेश करते हुए इस प्रकार दिखाई देने लगे जैसे बहुत से सूर्य-बिम्ब बादलों के पेट में समाते जा रहे हो।

तब तो ऐसे भयानक मुख के भीतर जिसका देख सकना भी कठिन था ऐसे दांतो के प्रकाश से दमकती हुई अत्यंत क्रोध में आकर भयानक गर्जना करती हुई वह काली भीषण अठ्ठाहस करने लगी । हूं-हूं करती हुई बहुत बड़ी तलवार लिए हुए देवी चंड पर कूद पडी। उसे बालों से पकड़ कर उसी तलवार से झट से चंड का सिर काट दिया। तब चंड को इस प्रकार मारा गया देख कर मुंड देवी की और दौड़ा। कुपिता काली ने तलवार से मारकर मुंड को पृथ्वी पर गिरा दिया तथा महाबली मुंड को मरा हुआ देखकर और सेना का नाश भी देखकर बाकी सेना भयभीत होकर इधर-उधर भाग गई। अनन्ता काली जी ने चंड तथा मुंड के सिर हाथ में ले लिए।

देवी काली भयानक अठ्ठाहस करती हुई चंडिका के पास पहुंच कर बोली, मैंने यह चंड और मुंड नामी महा पशु आपकी भेट चढ़ा दिए, अब तो युद्ध में शुम्भ-निशुम्भ का आप स्वयं वध करना। अपने सम्मुख लाए गए चंड और मुंड महा असुरों को देखकर कल्याणी चंडिका काली से ललित वचन बोली, हे देवी कालिके ! क्योंकि तुम चंड और मुंड को लेकर मेरे पास आई हो, इस कारण लोक में चामुंडा देवी नाम से तुम्हारी ख्याति होगी।

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