देवी की पूजा क्यों होती है

देवी की पूजा क्यों करते हैं



https://www.onlinegurugyan.com/2020/02/devi-ki-puja-kyo-hoti-hai.html?m=1




                   देवीपुराण की एक कथा में ऐसा प्रसंग मिलता है कि एक बार नारद जी को यह शंका हुई कि तीनों देवता ब्रह्मा, विष्णु और महेश सदैव किसकी उपासना किया करते हैं? संदेह होने पर नारद मुनि ने भगवान शिवजी से पूछा - मुझे ब्रह्मा विष्णु और आप से बढ़कर पूज्य कोई अन्य देवता तो मालूम नहीं है, फिर सबसे ऊंचा कौन है, जिसकी स्वयं आप भी आराधना करते हैं |


https://www.onlinegurugyan.com/2020/02/devi-ki-puja-kyo-hoti-hai.html?m=1



                    भगवान शिव जी बोले - हे मुनिवर, सूक्ष्म एवं स्थूल से परे जो महाप्राण आदि शक्ति है, वह स्वयं पारब्रह्म स्वरूप है, वह केवल अपनी इच्छा मात्र से ही सृष्टि की रचना पालन एवं संहार करने में समर्थ है | वास्तव में वह निर्गुण स्वरूप है, तथापि समय-समय पर धर्म की रक्षा एवं दुष्टों के नाश हेतु उन्होंने पार्वती दुर्गा, काली, चंडी, वैष्णो एवं सरस्वती के रूप में अवतार धारण किए हैं |

                   अधिकतर यह भ्रम होता है कि यह देवी कौन है और क्या वह पारब्रह्म से भी बढ़कर है? श्रीमद्देवीभागवत में ब्रह्मा जी के एक प्रश्न के उत्तर में स्वयं देवी ने कहा है-

                     वास्तविकता यह है, कि वह है सत्य ! मैं ही सत्य हूं, मैं न तो नर हूं न हीं नारी, न कोई प्राणी हूं जो नर या मादा हो, अथवा नर-मादा भी नहीं हूं, ऐसा कुछ भी तो नहीं हूं परंतु कोई भी वस्तु ऐसी नहीं जिसमें मैं विद्यमान नहीं हूं ! मैं प्रत्येक वस्तु, या शरीर में शक्ति के रूप में रहती हूं |
                
https://www.onlinegurugyan.com/2020/02/devi-ki-puja-kyo-hoti-hai.html?m=1


                     देवीपुराण में एक ही स्थान पर विष्णु भगवान यह स्वीकार करते हैं कि वह मुक्ति नहीं है और केवल महादेवी की आज्ञा का पालन करते हैं | यदि ब्रह्मा सृष्टि की रचना करते हैं, विष्णु पालन करते हैं और शिवजी संहार करते हैं, तो वह केवल यंत्र की भांति कार्यरत है ठीक उसी प्रकार जैसे की मशीन अपना काम कर रही होती है, उस यंत्र या मशीन की संचालनकर्ता महादेवी ही है | संसार मानो कठपुतली का कोई तमाशा है और उसकी डोरी स्वयं देवी के हाथों में है |


                    शक्ति या ऊर्जा के बिना प्राणी निर्जीव है, अतः ब्रह्मांड देवी का प्रतिबिंब अथवा छाया मात्र है | समस्त भौतिक पदार्थों एवं जीवो में शक्ति द्वारा ही चेतना वह प्राण का संचार होता है | इस नश्वर संसार में चेतना के रूप में प्रकट होने से देवी को "चितस्वरुपनी" माना जाता है | ब्रह्मा, विष्णु, महेश सहित अन्य सभी देवता कालांतर में नाशवान हो सकते हैं, परंतु देवी शक्ति सदैव अजन्मा और अविनाशी है, वही आदिशक्ति हैं और अनंत हैं |

                    श्रीमद्भागवत पुराण में महर्षि वेद व्यास राजा जन्मेजय को कहते हैं कि - आप इस बात में बिल्कुल भी संदेह रखें, जिस प्रकार एक जादूगर अपनी गुड़ियों का खेल  रचता है, उसी प्रकार महादेवी अपनी इच्छा और शक्ति द्वारा चल-अचल भौतिक प्राणियों व वस्तुओं की रचना या संहार किया करती हैं, इसी कारण वह सभी मनुष्यों और देवताओं द्वारा पूज्य हैं |


Post a Comment

0 Comments