श्रीराम ने अपनी सेना को दिया लंका पर आक्रमण करने का आदेश

श्रीराम ने अपनी सेना को दिया लंका पर आक्रमण करने का आदेश



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शुक और सारण (गुप्तचर)

समुद्र पर पुल बनाने की सूचना पाकर रावण आश्चर्यचकित रह गया । उसने इसकी कल्पना भी नहीं की थी । राम ने असंभव कार्य को संभव कर दिया था . इससे रावण के मन में राम के प्रति भय समा गया । उसने राम और उसकी सैन्य शक्ति की जानकारी पाने के लिए अपने मंत्रियों शुक और सारण को बुलाया वे दोनों गुप्तचर बहुत ही चतुर और मायावी थे रावण ने उन्हें राम की शक्ति का पता लगाने के लिए भेजा। 

शुक और सारण वानर का रुप बदलकर राम की छावनी में घुस गए । वे दोनों अलग-अलग स्थानों पर जाकर सूचनाएं एकत्र करने लगे किन्तु विभीषण उन्हें पहचान गया और पकड़कर राम के पास ले गया । राम के पूछने पर दोनों ने अपने असली नाम और आने का कारण बताया । राम ने मुस्कराते हुए कहा कि यदि अभी कोई और भेद लेना बचा हो तो वह भी ले लो तथा वापस जाकर रावण से कहना कि हम कल लंका पर आक्रमण कर देंगे । उसने जिस शक्ति के आधार पर सीता का अपहरण किया था , अपनी उस शक्ति को वह कल दिखाएं इतना कहकर राम ने उन दोनों को छोड़ दिया ।

शुक और सारण की सहादयता और मधुर स्वभाव से प्रभावित होकर रावण के पास पहुंचे । उन्होंने रावण के सामने भी राम की प्रशंसा की । रावण उन्हें महल के ऊपरी भाग में लेकर गया तथा उन्हें राम की सेना के वीरो का परिचय कराने का आदेश दिया । सारण ने नल को दिखाते हुए कहा कि वह सुग्रीव का सेनापति नल है जो कि बार - बार गर्जना कर रहा है । जो वीर जम्हाई ले रहा है , वह बालि का पुत्र अंगद है । 

रीछो के नेता जामवत है जो बीच में खड़े है । वह जो निडर होकर चल रहा है , उससे तो आप परिचित ही हैं । वह लंका को जलाने वाला हनुमान है । हनुमान के साथ धनुष - बाण धारण किए हुए राम है । राम के दाईं ओर उनका छोटा भाई लक्ष्मण है लक्ष्मण के बाई ओर आपके भाई विभीषण बैठे हैं । राम ने विभीषण को लंका का राजा बना दिया है । इनके साथ सुग्रीव बैठा हुआ है । 

सारण ने रावण को समझाया , " हे लकेश ! अकेले राम ही लंका पर विजय पाने के लिए काफी है । उनके साथ के योद्धाओं को पराजित करना कठिन है । अभी भी समय है , आप सीता को लौटाकर राम से मित्रता कर ले । शुक ने भी यही सलाह दी । शुक और सारण की बाते सुनकर रावण ने उन्हें फटकार कर चले जाने के लिए कहा । जब रावण महल में गया उसकी पत्नी मंदोदरी ने भी सीता को लौटाकर युद्ध न करने की सलाह दी किंतु उसने सीता को न लौटाने की जिद नहीं छोड़ी और सेना को युद्ध के लिए तैयार होने का आदेश दिया ।

शांतिदूत (अंगद)

राम ने रणनीति के अनुसार सेना को चार भागों में बांटा और सवेरा होते ही लंका को चारों ओर से घेर लेने का आदेश दिया । लंका के चारो प्रवेश द्वारों पर आक्रमण करने के लिए दल तैनात किये गए । राम स्वयं सुबेल पर्वत पर चढ़कर लंका की स्थिति को समझने लगे।वानर सेना द्वारा लंका को घेर लिया गया ।

 राम ने युद्ध को टालने के लिए समझौते की कोशिश करने का निर्णय लिया । उन्होंने अंगद से लंका जाकर रावण को समझाने के लिए कहा कि वह  सीता को लौटा दे , अन्यथा अपने संपूर्ण वंश के नाश के लिए तैयार हो जाए । राम की आज्ञा पाकर अंगद लंका में प्रवेश किया । रावण की सभा में पहुंचकर उसने अपना परिचय दिया- " मैं आपके मित्र बालि का पुत्र हूं । इसलिए आपको युद्ध से बचने की सलाह देने आया हूं । आप माता सीता को लौटा दे , नहीं तो लंका में एक भी व्यक्ति जीवित न बचेगा । "

 रावण ने अंगद को अपनी ओर मिलाने का प्रयास करते हुए कहा कि राम ने तुम्हारे पिता का वध कर दिया था और तुम अपने पिता के हत्यारे के पक्ष में चले गए । तुम्हे शर्म आनी चाहिए । तुम मेरे पक्ष मे आ जाओ । तुम तो मेरे मित्र के पुत्र हो । मेरे पक्ष में आकर अपने पिता की हत्या का बदला ले लो । " अंगद पर रावण की बातो का कोई प्रभाव नहीं पड़ा । वह रावण को धमकाता रहा । रावण ने क्रोध में आकर अंगद को मार देने का आदेश दिया । रावण के सैनिक उसे पकड़ने आए तो उसने उन्हें मार दिया । वह कूदकर राज - सभा से बाहर आ गया और आकाश - मार्ग से लौट आया । 

लंका पर आक्रमण 

अंगद के शांति प्रयासों के असफल होने पर राम ने लंका पर आक्रमण का आदेश दे दिया । लंका के उत्तरी द्वार पर राम , लक्ष्मण , सुग्रीव , जामवंत और विभीषण ने आक्रमण कर दिया । रावण ने बदले में अपनी चतुररंगिनी  सेना को आक्रमण का आदेश दिया । 

राक्षस वानर - सेना पर तलवारों और शूलों से आक्रमण कर रहे थे तथा वानर सेना को आक्रमण का आदेश दिया ।   राक्षस वानर सेना पर तलवारों और शूलो से आक्रमण कर रहे थे तथा वानर उन पर पत्थर और वृक्ष उखाड़कर फेक रहे थे । दोनों पक्षों में घमासान युद्ध होने लगा । हर तरफ हाथियों के चिपाड़ने और घोड़ो के हिनहिनाने की आवाजे  गूंजने लगी । अनेक योद्धा युद्ध में मारे गए तथा कई घायल हो गए । 

शाम होने पर मेघनाद ने पुनः युद्ध आरम्भ कर दिया । अंगद ने उसका सामना किया तथा उसके रथ को तोड़कर सारथी और घोड़ों को मार डाला । मेघनाद  क्रुद्ध होकर अदृश्य हो गया और उसने वानर सेना पर  बाणों  की झड़ी लगा दी । इससे एक बड़ी संख्या में वानर मरने लगे । तब मेघनाद ने नाग - बाण छोड़ा जिससे राम और लक्ष्मण मूर्छित होकर गिर गए । उनके गिरते ही वानर सेना में हाहाकार मच गया । मेघनाद समझा कि राम और लक्ष्मण दोनों मृत्यु को प्राप्त हो गए । मेघनाद ने रावण को विजय की सूचना दी । यह सुनकर रावण ने मेघनाद को गले लगाया । 

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