पांचवा नवरात्रि स्कंदमाता की पूजा व इनका इतिहास

पांचवा नवरात्रि स्कंदमाता की पूजा व इनका इतिहास


https://www.onlinegurugyan.com/2020/03/Skandmata.html?m=1

पांचवा नवरात्र


             स्कन्दमाता को नवरात्रि के पांचवें दिन अर्थात मां दुर्गा के पांचवे स्वरुप के रूप में जाना जाता है। इन्हें स्कन्द कुमार कार्तिकेय नाम से भी जाना जाता है। यह प्रसिद्ध देवासुर संग्राम में देवताओं के सेनापति बने थे। पुराणों में इन्हें कुमार शौर शक्तिधर बताकर इनका वर्णन किया गया है। इनका वाहन मयूर है अतः इन्हें मयूरवाहन के नाम से भी जाना जाता है। इन्हीं भगवान स्कन्द की माता होने के कारण दुर्गा के इस पांचवें स्वरूप को स्कन्दमाता कहा जाता है। 

माँ स्कन्दमाता की पूजा विधि

         
             माँ स्कंदमाता की पूजा लाल हरे या सफेद कपड़े पहनकर करें, माता को लाल हरा और सफेद रंग बहुत ही प्रिय है, केला, अंगूर और दही का भोग लगाने से मनवांछित फल की प्राप्ति होतीहै। माता को चंदन व आभूषण भेट करें, धूप दीप जलाएं। बुध ग्रह से संबंधित शांति की पूजा करने के लिए यह दिन बहुत ही उत्तम माना गया है। हो सके तो केले (प्रसाद) को गरीबों में जरुर बाटें। 

माँ स्कन्दमाता का स्वरुप


            माँ स्कन्दमाता की पूजा नवरात्रि में पांचवें दिन की जाती है। इस दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में होता है। इनके विग्रह में स्कन्द जी बालरूप में माता की गोद में बैठे हैं। स्कन्द मातृस्वरूपिणी देवी की चार भुजायें हैं, ये दाहिनी ऊपरी भुजा में भगवान स्कन्द को गोद में पकड़े हैं और दाहिनी निचली भुजा जो ऊपर को उठी है, उसमें कमल पकड़ा हुआ है।  माँ स्कन्दमाता का वर्ण पूर्णतः शुभ्र है और कमल के पुष्प पर विराजित रहती हैं। इसी से इन्हें "पद्मासना देवी" भी कहा जाता है। इनका वाहन भी सिंह है। 

            माँ स्कन्दमाता की मन व श्रद्धा भाव से पूजा करने वाले साधक की सर्व मनोकामना पूर्ण होती हैं। स्कंदमाता की आराधना का शास्त्रों में बहुत बड़ा महत्व बताया गया है। इनकी आराधना उसे साधक की सभी इच्छाएं पूर्ण होती है, व भवसागर को पार करके कठिनाइयों से दूर हो जाता है। स्कंदमाता की साधना करने वाला वाले व्यक्ति को सुख-शांति, बुद्धि का विकास और वैभव प्राप्त होता है। 

Post a Comment

0 Comments