क्या पीपल के वृक्ष में देवताओं , पितरों का निवास है ? अवश्य जानें !

क्या पीपल के वृक्ष में देवताओं , पितरों का निवास है ? अवश्य जानें !

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भारतीय जन - जीवन में वनस्पतियों , वृक्षों आदि में भी देवत्व की अवधारणा की गयी है । वृक्षों में पीपल , गूलर , बरगद , पाकड़ और आम को पञ्चवट माना गया है । इनमें भी धार्मिक आस्था की दृष्टि से पीपल का स्थान सर्वोपरि है । कल्पवृक्ष की तरह पीपल भी अभीष्ट फल प्रदान करने वाला है । पीपल पवित्र वृक्ष है , इसमें देवताओं एवं पितरों का निवास है । 

पीपल के मूल में ब्रह्माजी , मध्य में विष्णुजी एवं अग्रभाग में शिवजी साक्षात् रूप में विराजमान हैं । स्कन्दपुराण में बताया गया है कि अश्वत्थवृक्ष के मूल में विष्णु , तने में केशव , शाखाओं में नारायण , पत्तों में भगवान् श्रीहरि और फलों में सब देवताओं से युक्त अच्युत सदा निवास करते हैं । यह वृक्ष मूर्तिमान् श्रीविष्णुस्वरूप है । 

महात्मा पुरुष इस वृक्ष के पुण्यमय मूल की सेवा करते हैं । इसका आश्रय करना मनुष्यों के सहस्रों पापों का नाशक तथा सभी अभीष्टों का साधक है । अनादि काल से पीपल की पूजा होती आयी है । कोई मृत्यु को प्राप्त होता है तो उसकी आत्मा की शान्ति के लिये उसके निमित्त पीपलवृक्ष के मूल में जल चढ़ाते हैं । अशौच की पूर्ण निवृत्ति भी देववृक्ष पीपल के स्पर्श से मानी गयी है । 

आयुर्वेद में बहुत - से रोगों का नाश करने की शक्ति पीपलवृक्ष में बतायी गयी है । इस संसार को भी अश्वत्थ कहा गया है । संसाररूपी पीपल का वृक्ष भी तत्त्वतः परमात्मरूप होने से पूजनीय है । इस संसाररूप पीपलवृक्ष की पूजा यही है कि इससे सुख लेने की इच्छा का त्याग करके इसकी सेवा करना । 

इस प्रकार अश्वत्थवृक्ष हमें संसारकी क्षणभङ्गुरता तथा सर्वत्र परमात्मा - प्रभु की व्यापकताका आध्यात्मिक संदेश प्रदान करता है । पीपल , आँवला और तुलसी इनकी भगवद्भावपूर्वक पूजा करने से भगवान की प्रत्यक्ष पूजा हो जाती है । अश्वत्थवृक्ष के आरोपण की भी बड़ी महिमा है , ऐसे व्यक्ति की वंशपरम्परा का उच्छेद नहीं होता । समस्त ऐश्वर्य एवं दीर्घायु की प्राप्ति होती है और पितृगण नरक से छूटकर मोक्ष प्राप्त करते हैं ।

अश्वत्थ की पूजा एवं स्पर्श प्राय : शनिवार को ही विशेष रूप से किया जाता है । अश्वत्थ की पूजा का नियम लेने के लिये पहले दिन शुक्रवार को प्रातः शुभ मुहूर्त में पीपलवृक्ष के पास जाकर उसकी जड़ में सुपारी , हल्दी , कुमकुम और चावल चढ़ाकर दोनों हाथ जोड़कर कहे ' कल्पवृक्ष ! पितृदेव ! मैं कल से सुख , शान्ति एवं समृद्धि के लिये आपकी विधिपूर्वक पूजा करूँगा । इसके लिये आप मुझे आज्ञा प्रदान करें ।  

इस प्रकार उनकी आज्ञाप्राप्ति की भावना कर शनिवार प्रात : काल तेल की आड़ी बत्तीवाला दीपक जलाये । ताँबे के लोटे में जल लेकर पीपलवृक्ष के पास जाकर दीपक रखकर पीपल की जड़ में जल चढ़ाये । पाँच बार परिक्रमा करे , और प्रार्थना करें ।

आप सुन्दर तथा प्रियदर्शन हैं । आप मेरी अभिलाषाओं को पूर्ण करें , मेरे कामादि शत्रुओं का पराभव करें । मुझे दीर्घ आयु , संतान , धन - धान्य , सौभाग्य तथा सभी प्रकार का ऐश्वर्य प्रदान करें । देव ! महावृक्ष ! मैं आपकी शरण में हूँ । 

इस प्रकार प्रार्थनापूर्वक परिक्रमाके बाद पीपल की जड़ को स्पर्श करे । सच्ची श्रद्धा हो तो नि : संदेह कल्पवृक्ष पीपल सभी अभीष्टों को पूर्ण करने वाला है । पीपल की पूजा करने से ग्रहपीडा , पितृदोष , कालसर्पयोग , विषयोग तथा ग्रहों से उत्पन्न दोष का निवारण हो जाता है । प्रात : काल पीपल के नीचे बैठकर मन्त्र - जप करना स्वास्थ्यके लिये भी लाभदायक है । पीपलवृक्ष प्राणवायु प्रवाहित करता है । जन्मकुण्डली में कोई - न - कोई दोष जरूर होता है , उसमें पितृदोष अधिक होता है उससे घबराने की आवश्यकता नहीं । पीपल की पूजा करने से अच्छा फल प्राप्त होता है , और भगवत्प्रीतिपूर्वक पूजन करने से विशेष अभ्युदय होता है । इस प्रकार अश्वत्थ या पीपल भूलोक का कल्पवृक्ष है ।

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