लंका पर विजय पाने के लिए श्रीराम ने की युद्ध की तैयारी

लंका पर विजय पाने के लिए श्रीराम ने की युद्ध की तैयारी


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युद्ध के लिए वानर सेना का प्रस्थान

हनुमान के लंका से वापस लौटने पर राम ने युद्ध के विषय में हनुमान से परामर्श किया । राम ने हनुमान से कहा- सीता की खोज करके आपने मुझ पर और रघुकुल पर जो कृपा की है , उसे मैं कभी नहीं भुला सकता । मैं सदा आपका आभारी रहूँगा । मै यह ऋण कभी न उतार पाऊंगा । 

इसके बाद राम ने समुद्र पार करने को समस्या पर विचार - विमर्श किया और कहा कि हम रावण जैसे महाबलशाली को किस प्रकार पराजित कर पाएंगे ।। सुग्रीव ने राम को धैर्य बंधाते हुए कहा कि विपत्ति के समय साहस के साथ काम लेना चाहिए । परिश्रमी मनुष्यों के लिए कोई - न - कोई मार्ग अवश्य ही निकल आता है । 

 युद्ध  की तैयारियां की जाने लगी । वानर - सेना सहस्रों की संख्या में एकत्रित हो गई । राम ने अपने विचा बताये- " आज का दिन बहुत शुभ है । आज उत्तराफाल्गुनी नक्षत्र है । इसी नक्षत्र में सीता का जन्म हुआ था ।  लिए आज ही सेना प्रस्थान करेगी । ” सुग्रीव की आज्ञा पाते ही सेनापति नल ने वानर - सेना को प्रस्थान आदेश दिया । राम , लक्ष्मण और सुग्रीव की जय - जयकार करते हुए वानर - सेना आगे बढ़ी तथा  पर्वत जाकर रुक गई l 

विभीषण का लंका त्यागना

राम को सेना के  पर्वत पर पहुंचने की सूचना पाकर लंकावासो अत्यधिक भयभीत हो उठे । हनुमान द्वारा लंका को जला देने उनका मन पहले से ही भय से व्याप्त था । वे चिन्तित ये कि जिनका दाना वीर और बलशाली है . तो स्वयं कितने बलशाली होंगे । लंकाावासियों को चिंतित देखकर विभीषण ने रावण को समझाने की कोशिश की- भ्राता रावण ! हमे राम से शत्रुता नहीं करनी चाहिए । इसी मे राक्षस जाति का भला है । आप सीता को लौटा दे । वानरों को विशाल सेना युद्ध के लिए समुद्र के उत्तरी किनारे पर डेरा डाले खड़ी है । 

विभीषण के मुंह से सीता को लोटाने की बात सुनते ही रावण अत्यधिक क्रोधित हो उठा उसने विभीषण को फटकारा और लंका से चले जाने के लिए कहा । रावण ने सभा - भवन में पुत्रो , मंत्रियों और सेनापतियों को बुलाकर उनसे विचार प्रकट करने को कहा किन्तु रावण का विरोध करने का साहस कौन करता ? सबने उसकी बात को ठीक बताया । विभीषण ने रावण को एक बार फिर समझाया कि शत्रु की शक्ति को कम नहीं समझाना चाहिए । सबका हित इसी में है कि सीता को राम के पास भेज दे । विभीषण की सलाह सुनकर रावण का क्रोध फिर से भड़क उठा । उसने विभीषण पर राम का शुभचिंतक होने का आरोप लगाया और उसे फटकारते हुए कहा कि यदि तुम राम के  हितचिंतक हो , तो उसके पास चले जाओ ।

अपमान से पीड़ित होकर विभीषण ने लंका को त्यागने का निश्चय कर लिया किन्तु जाते - जाते भी उसने रावण को सावधान करते हुए कहा- " जब व्यक्ति के सिर पर मृत्यु मंडराने लगती है तब उसे किसी की सलाह अच्छी नहीं लगती । मैं जा रहा हूँ । लंका के बुरे दिन आ गए हैं । " यह कहकर विभीषण अपने चार मंत्रियों के साथ लंका त्यागकर आकाशमार्ग से राम से मिलने के लिए चल दिया ।

 विभीषण को लंका - नरेश बनाने का आश्वासन

 विभीषण अपने आकाश - यान से वानर सेना के निकट उतरा । उसने दूर से ही अपना और मंत्रियों का परिचय दिया तथा लंका छोड़ने का कारण भी बताया । सुग्रीव ने राम के पास जाकर विभीषण के मंत्रियों सहित शरण मांगने के विषय में बताया । साथ ही शंका प्रकट की कि ये पांचों रावण के गुप्तचर हो सकते है जो शायद हमारा भेद लेने आए है । जो व्यक्ति अपने भाई का नहीं हो सका , वह हमारा कैसे हो सकता है ?

 राम ने सुग्रीव को समझाया- " इस समय इन्हें अपनी ओर मिला लेना ही उचित होगा । वे हमारी शरण में आए है । शरणागत की रक्षा करना हमारा धर्म है । यदि रावण भी आकर शरण मांगेगा तो हम उसे भी शरण मे ले लेंगे । इसलिए विभीषण और मंत्रियों को सम्मानपूर्वक हमारे पास ले आओ । " हनुमान जाकर विभीषण को ले आए । विभीषण ने आते हो राम के चरणों में गिरकर शरण मांगी । राम ने विभीषण को उठाकर अपने पास बिठा लिया । 

राम ने विभीषण से लंका के विषय में पूछा । विभीषण ने लंका और रावण की शक्ति का परिचय देते हुए कहा- " रावण की वीरता के विषय में सभी जानते है कि वह महान योद्धा है । उसके पराक्रम से देवता तक कांप जाते है । उसने यमराज तक को बंदी बना लिया था । " इसके पश्चात् विभीषण ने लंका के अन्य योद्धाओं के बल और पराक्रम के विषय में जानकारी देते हुए बताया- " कुंभकर्ण हमारा मंझला भाई है । उसका शरीर अत्यंत विशाल एवं चट्टान - सा कठोर है । 

रावण का बड़ा पुत्र मेघनाद बुद्धिमान और महाबलशाली है ।इंद्र पर विजय  पा  लेने के कारण इसे इंद्रजीत भी कहा जाता है । उसकी वीरता से देवता डरकर छिप जाते है । रावण का सेनापति प्रहस्त है जो युद्ध - कला में अत्यन्त निपुण है । इनके अतिरिक्त लंका के अन्य वीर योद्धाओं में अतिकाय , अंकपन , महोदर आदि के नाम प्रमुख है । रावण न केवल बहुत बलशाली है , बल्कि वह महान तपस्वी भी है । वह भगवान शिव का परम भक्त है । उसे शिव और ब्रह्मा से भी अनेक वरदान मिले हुए है ।

राम ने विभीषण को आश्वासन दिया कि इन सबको पराजित करके मैं तुम्हे लंका - नरेश बनाऊंगा । विभीषण ने भी राम को पूर्ण सहयोग देने का वचन दिया । तब राम ने लक्ष्मण से समुद्र का जल मंगाकर विभीषण का राजतिलक किया तथा उसे लंका का राजा घोषित कर दिया ।

समुद्र पर पुल निर्माण 

लंका तक पहुंचने के मार्ग में समुद्र पार करना एक कठिन समस्या थी । राम तीन दिन तक समुद्र के किनारे बैठकर उससे मार्ग देने की प्रार्थना करते रहे । किन्तु समुद्र ने मार्ग न दिया । तब राम ने क्रोध में धनुष पर बाण चढ़ाकर उसे सुखा देने की धमकी दी । राम का क्रोधित रूप देखकर समुद्र भय से काँपते हुए मनुष्य रूप में प्रकट हुआ और राम से क्षमा मांगी । समुद्र ने राम से कहा कि सुग्रीव के सेनापति नल ने अपने पिता से समुद्र पर पुल बनाने की कला सीखी हुई है । आप उसे पुल बनाने के लिए कहे । आप धनुष पर चढ़ाए बाण को उत्तर दिशा  की ओर छोड़ दे । इससे वहाँ बसे अधर्मियों और दुष्टों का अंत हो जाएगा ।

समुद्र की सलाह मानकर राम ने बाण को समुद्र की उत्तर दिशा की ओर छोड़ा । इससे उस क्षेत्र के समस्त दुष्टजन मारे गए और वह क्षेत्र रेतीला हो गया । इसके बाद राम ने नल को पुल बनाने का आदेश दिया । नल ने वानरों को समुद्र में राम का नाम लिखकर पत्थर और चट्टाने फेंकने के लिए कहा । इस प्रकार पाँच दिनों में ही पुल बन गया और वानर सेना पुल द्वारा समुद्र के पार पहुंच गई । वहाँ सेना ने सुबेल पर्वत पर डेरा डाल दिया । 

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