क्या है समय, चरित्र और श्रद्धा - धर्म का मार्ग अवश्य जाने

क्या है समय, चरित्र और श्रद्धा - धर्म का मार्ग अवश्य जाने

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मूल्यवान समय

           बीत रहा समय आज फिर वापस नहीं मिलेगा। सदुपयोग, उपयोग एवम दुरुपयोग कुछ किया जा सकता है। कहा जाता है कि समय नष्ट हो गया - समय नष्ट नहीं हो सकता, समय तो गति है, बढ़ता, चलता ही जाता है। समय के मूल्यवान होने के बोध के कारण ही अनेकों व्यक्तियों को आज तक याद किया जाता है। जो लोग अपना समय मूल्यवान समझते हैं, वे दूसरों का समय नष्ट नहीं करते। 

           समय का सदुपयोग करने वाले विवेकानंद जी हो जाते हैं, गांधीजी हो जाते हैं, गोखले जी हो जाते हैं। जो समय के मूल्य को नहीं समझता समय भी उसे मूल्य नहीं देता। समय रूपी इतनी विशिष्ट संपदा को एसे ही व्यर्थ न करें। इस समय में कितना कुछ सार्थक सर्जनात्मक किया जा सकता है।

क्या है चरित्र

           चरित्र आदमी का अनमोल धन है। इसकी हर प्रकार से रक्षा करनी चाहिए। हमारे भौतिक साधन किसी कारणवश आज नहीं है तो कल को जाएंगे, लेकिन यदि अपने चरित्र को गिरा दिया तो पुनः वह स्तर पाना असंभव है। यह देखा गया है कि धन, मान-मर्यादा और यश उस व्यक्ति के पीछे चलते हैं, जिनका चरित्रबल सुदृढ़ है। 

           मानव जीवन की सार्थकता उज्जवल और उच्च चरित्र से होती है। सामाजिक प्रतिष्ठा के भागीदार वह होते हैं जिनमें चरित्रबल होता है। जिस पर सभी लोग विश्वास करते हैं। एसे ही लोगों की शाख दूसरों पर पड़ती है। दूसरों को प्रकाशित और सन्मार्ग पर लाने का काम केवल चरित्रवान ही कर सकते हैं।

श्रद्धा - धर्म का मार्ग

           सनातन वैदिक धर्म में धर्म केवल श्रद्धा का विषय है। अतः ग्रहस्थी के लिए साधना कहो या उपासना ग्रहस्थियों के लिए आत्मबोध का प्रयास करने पर गौर करें कि आत्मा ही परमात्मा है, वही गुरु है, वही ब्रहमा है। जरूरत है स्वयं की आत्मा को स्वयं के द्वारा ही समझने की। याद रखें कोई दूसरा हमारा कल्याण नहीं कर सकता। यह बात अलग है कि कोई विशेष हमारे मार्गदर्शक हो सकते हैं। 

           अपनी साधना के बारे में थोड़ा सा भी आपको कभी भी किसी के आगे जिक्र नहीं करना चाहिए, क्योंकि दूसरे केवल अपना मत या ज्ञान देते हुए हमें शिवाय भ्रमित और विचलित करने के अलावा कुछ नहीं कर सकते। आज के दौर में साधना इस तरह करनी चाहिए कि हमारे दैनिक कार्य में बाधा भी नहीं पड़े और साधना भी चलती रहे।

           सच पूछो तो साधना का अर्थ सन्यासियों की तरह हठ योग नहीं है, बल्कि गृहस्थी के लिए जो मात्र जप ही बहुत कुछ है, जो कि कुछ देर बैठ कर तथा शेष चलते फिरते भी जप करने का जतन करना चाहिए। अर्थात जब हम किसी से बात या लिख, बोल, पढ़ नही रहे हैं तब हमें अपने इष्ट के जप का अभ्यास करना चाहिए। यकीनन यदि आपने अभ्यास छोड़ा नहीं तब एक दिन जप आपके मन मस्तिष्क में बस जाएगा। एक बात याद रखें कि कलयुग में भगवान जी हमारी पूजा पद्धति के भूखे नहीं हैं, बल्कि भाव के भूखे हैं।

           कुल मिलाकर मन वचन कर्म से किसी के साथ भी बुरा नहीं करना चाहिए। जिस दिन आपको उपरोक्त प्रयासों में आनंद आने लगे तो, समझ लेना आप की साधना सही चल रही है।

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