रावण ने युद्ध के लिए कुंभकर्ण को बुलाया | श्रीराम ने किया कुंभकर्ण का वध

रावण ने युद्ध के लिए कुंभकर्ण को बुलाया | श्रीराम ने किया कुंभकर्ण का वध



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रावण द्वारा कुंभकर्ण को बुलाना

रावण ने कुंभकर्ण को बुलाने के लिए राक्षसों का एक दल भेजा । कुंभकर्ण पर्वत के समान विशाल आकार का था । वह इतना आलसी था कि छह महीनों तक सोया रहता था । छ : महीनों के बाद वह जागता था और भोजन करके फिर सो जाता था । 

जब रावण के द्वारा भेजा गया राक्षस दल वहां पहुंचा , तब भी वह सो ही रहा था । राक्षस - दल ने उसे जगाने के लिए उसके कानों के पास ढोल बजाए तथा उसके हाथ , कान , पैर , बाल , टांगों आदि को खीचा किन्तु उसकी नीद न खुली । उस पर हाथी चलाए गए तब जाकर वह नींद से जागा । 

उसने अंगड़ाई लेते हुए भयंकर गर्जना की । रावण ने उसको खाने के लिए भैसे का मांस और पीने के लिए मदिरा के मटके भेजे थे । वह मांस खाने और मंदिरा पीने लगा । नीद का नशा टूटने पर उसने राक्षस - दल से उसे जगाने का कारण पूछा । राक्षसों ने उसे रावण का संदेश सुनाया तथा तुरंत रावण के पास चलने का अनुरोध किया ।

कुंभकरण ने रावण के पास पहुंचकर बुलाने का कारण पूछा रावण ने दीनता भरे स्वर में कहां प्रिय भाई ! लंका पर भारी संकट आ गया है । तुम तो गहरी नींद में सोए पड़े थे । यहाँ राम ने लंका पर कर दिया है । वह समुद्र पर पुल बनाकर वानर सेना के साथ यहां आ गया है । उसने लंका को घेर रखा है । उसके साथ युद्ध मे सेनापति प्रहस्त सहित अनेक वीर योद्धा मारे जा चुके है । इस संकट से अब तुम्ही बचा सकते हो । इसी लिए तुम्हे बुलाया है । इतना कहकर रावण ने उसे सीता - हरण से लेकर युद्ध तक को सभी घटनाएं बताई । 

कुंभकर्ण ने रावण का उपहास उड़ाते हुए कहा- " इस संकट के लिए आप स्वयं दोषी है । बुरे कार्य का परिणाम बुरा ही होता है । आपको विभीषण और मंदोदरी ने समझाया था किन्तु आपने उनकी सलाह न मानी । अब बुरे कर्मों का फल तो आपको भुगतना ही पड़ेगा । 

कुंभकर्ण की बाते सुनकर रावण रुष्ट होकर बोला- मैंने तुम्हे इस संकट से छुटकारा दिलाने के लिए बुलाया था । और तुम मुझको ही समझाने लग गए । मुझसे जो भूल हो गई सो हो गई । अब उसकी चर्चा करना व्यर्थ है । राम को हराकर मुझे इस संकट से मुक्ति दिलाओ । " रावण की दयनीय स्थिति देखकर कुंभकर्ण को उस पर दया आ गई । उसने राम - लक्ष्मण को मारने का वचन दिया । तब रावण ने कुम्भकर्ण से युद्ध स्थल पर जाने का अनुरोध किया । 

कुंभकर्ण द्वारा वानर संहार 

कुंभकर्ण हाथ में त्रिशुल लेकर वानर सेना पर टूट पड़ा । साथ में वह गर्जना भी करता जाता था । उसकी गर्जना से वानर भी कांप गए । उसके आक्रमण व गर्जना से वानर भयभीत होकर भाग खड़े हुए । अंगद ने बड़ी मुश्किल से उन्हें रोका । वानर वृक्ष उखाड़- उखाड़कर तथा पत्थरों की चट्टाने उस पर फेकने लगे । विशाल शरीर वाले कुंभकर्ण पर इनका कुछ भी प्रभाव न पड़ा ।

वानर - सेना कुंभकर्ण की सेना का मुकाबला कर रही थी । वानर - सेना में से कुंभकर्ण के समक्ष आने का साहस किसी में न था । तब हनुमान आगे आकर कुंभकर्ण से मुकाबला करने लगे । हनुमान ने एक बहुत बड़ी चट्टान उठाकर कुंभकर्ण पर दे मारी । इससे कुंभकर्ण थोड़ा - सा घायल हो गया । क्रोधित होकर उसने हनुमान को त्रिशुल मारकर घायल कर दिया । 

हनुमान की छाती से बहते रक्त को देखकर वानर भय से 'बचाओ ! बचाओ ! ' चीखने लगे । कुंभकर्ण वानरों को मारते हुए आगे बढ़ता जा रहा था । अंगद ने कुभकर्ण की छाती में कसकर घुसा मारा । कुंभकर्ण थोड़ी देर के लिए बेसुध - सा हो गया किन्तु जल्दी ही वह संभल गया । ''

अब कुंभकर्ण ने अपना आक्रमण पहले से भी तेज कर दिया और अनेक वानरों को मार डाला । उसने अंगद और सुग्रीव को भी मूर्छित कर दिया । इसके बाद मूर्छित सुग्रीव को अपनी बगल में उठाकर वह लंका की ओर चल पड़ा । 

तभी सुग्रीव को होश आ गया । स्वयं को कुंभकर्ण के हाथों से छुड़ाने के लिए उसने अपने तेज दांतो और नाखूनों से कुंभकर्ण की छाती फाड़ दी । कुंभकर्ण द्वारा जमीन पर फेक देने पर सुग्रीव जान बचाकर भाग गया । 

कुंभकर्ण का वध

हनुमान , अंगद और सुग्रीव भी कुंभकर्ण का सामना नहीं कर सके थे । अब लक्ष्मण ने कुभकर्ण पर आक्रमण  कर धनुष से तेज वाण छोडे । लक्ष्मण की वीरता को देखकर कुंभकर्ण ने कहा  - हे लक्ष्मण ! तुमसे युद्ध करके मुझे प्रसन्नता हुई । तुम सचमुच वीर हो । मैं तुमसे नहीं राम से लड़ने आया है । राम कहाँ है ?  

लक्ष्मण ने कुंभकर्ण को उस ओर भेज दिया जहां राम युद्ध करने के लिए तैयार खड़े थे । राम और कुंभकर्ण के बीच भयंकर युद्ध होने लगा । राम ने बाण चलाकर उसकी दाई  भुजा  को काट दिया । भुजा कटकर दूर जा गिरी और उसके नीचे अनेक वानर दब गए । कुंभकर्ण ने क्रोध में बाएं हाथ से एक वृक्ष उखाड़ा और राम को मारने दौड़ा । 

राम ने बाण चलाकर उसकी बाई भूमा भी काट दी । कुंभकर्ण क्रोध से पागल - सा हो गया तथा  गरजते हुए मुंह फाड़कर राम की ओर भागा । राम ने वाण चलाकर उसका टांगे काट दी । वह जमीन पर गिर गया । राम ने बाण चलाया । कुंभकर्ण की गरदन कटकर दूर जा गिरी । श्रीराम ने कुंभकर्ण का वध कर दिया, कुंभकर्ण के मरते ही वानर सेना ने जय श्री राम , ' जय श्री राम ' की आवाज से आकाश गूंजा दिया । कुंभकर्ण के मरते ही उसकी सेना लंका की ओर भाग खड़ी हुई । 

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