राम-लक्ष्मण को नागपाश से किया मुक्त | रावण का युद्ध स्थल में प्रवेश

राम-लक्ष्मण को नागपाश से किया मुक्त | रावण का युद्ध स्थल में प्रवेश


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राम-लक्ष्मण को नागपाश से किया मुक्त 

राम और लक्ष्मण को मृत्यु के समाचार से रावण अत्यन्त प्रसन्न हुआ और उसने राक्षसियों को आदेश दिया कि वे सीता को युद्ध स्थल पर ले जाए  । राक्षसियाँ सीता को पुष्पक विमान में से युद्ध स्थल दिखाने लगी , जहां मूर्छित राम और लक्ष्मण  मूर्छित पढ़े हुए  थे । सीता उन्हें मृत समझकर विलाप करने लगी किंतु त्रिजटा ने सीता को समझाया कि राम लक्ष्मण केवल मूर्छित हुए हैं और दोनों शीघ्र ही होश में आ जाएगे । पुष्पक विमान वापस अशोक वाटिका की ओर चला गया । 

 राम - लक्ष्मण को मूर्छित देखकर सुग्रीव रोने लगा । तब विभीषण ने उसे धैर्य रखने के लिए कहां कुछ समय पश्चात् राम होश में आ गए । उनके सामने घायल लक्ष्मण अभी भी मूर्छित पड़ा था । भाई की बुरी दशा को देखकर राम विलाप करते हुए कहने लगे- " मैं अयोध्या लौटकर माता सुमित्रा को क्या उत्तर  दूंगा ? 

हे सुग्रीव मैं विभीषण को लंका का राजा नहीं बना सका । तुम किष्किंधा वापस चले जाओ । " विभीषण ने उन्हें धैर्य बंधाया और कहा- " समस्त वानर सेना आपकी ओर आशान्वित दृष्टि से देख रही है । आप अत्यन्त वीर है । आपको युद्ध के मैदान में इस प्रकार विलाप नहीं करना चाहिए । आपको शोक मे देखकर निराशा आती है । आप हमारे पथ - प्रदर्शक है । लक्ष्मण को केवल मूर्छा  आई है । वे अभी होश में आ जाएंगे । ” 

तभी आकाश में उड़ते हुए पक्षियो का राजा गरुड़ वहां आया । उसने राम - लक्ष्मण को नागपाश के प्रभाव से मुक्त कर दिया । लक्ष्मण होश में आ गए । राम - लक्ष्मण के घाव भी ठीक हो गए । राम और लक्ष्मण को होश में आया देखकर वानर सेना की खुशी का ठिकाना न रहा । उन्होंने हर्ष की ध्वनि से आकाश गुंजायमान कर दिया । 

रावण का युद्ध स्थल में प्रवेश 

राम और लक्ष्मण के होश में आने की सूचना पाकर रावण चिंतित हो उठा । उसने राक्षस - सेना के सर्वाधिक शक्तिशाली वीरो को युद्ध करने के लिए भेजा । सबसे पहले धूम्राक्ष को भेजा गया जिसका हनुमान ने वध कर दिया । वज्रदंष्ट्र नामक राक्षस ने आते ही राम - लक्ष्मण पर आक्रमण कर दिया किन्तु अंगद ने तलवार से उसका सिर काट डाला । रावण ने महाबलशाली अंकपन को भेजा । उसके आक्रमणों से घबराकर वानर सेना भाग खड़ी हुई । वानरो की दुर्दशा देखकर हनुमान को बहुत अधिक क्रोध आया और उन्होंने एक बहुत  बड़े वृक्ष को उखाड़कर अंकपन पर फेका । वह वृक्ष के नीचे दबकर मर गया । 

इन वीरों के मारे जाने पर चिंतित रावण ने सेनापति प्रहस्त को युद्ध के मैदान में उतारा । प्रहस्त और नील के बीच भयानक युद्ध होने लगा । नील ने उसका धनुष तोड़ दिया । प्रहस्त ने उस पर मूसल से चोट की जिससे नील का सिर चकरा गया । क्रोध में आकर नील ने एक बहुत बड़ी चट्टान उठाई और प्रास्त पर फेक दी । चट्टान के नीचे कुचले जाने के कारण प्रास्त भी मारा गया ।

सेना के प्रमुख योद्धाओं के मारे जाने से रावण चिंतित हो गया । रावण ने स्वयं को युद्ध स्थल में प्रवेश करने का निर्णय लिया और युद्धभूमि की ओर प्रस्थान किया । उसके साथ नरांतक , अतिकाय , महोदर आदि अनेक योद्धा थे । रावण को सेना वानर सेना पर कहर की तरह टूट पड़ी । इससे वानर - सेना के पैर उखड़ गए । रावण के आक्रमण से सुग्रीव मूर्छित हो गया । बड़े - बड़े वानर योद्धा घायल हो गए । 

वानरों की ऐसी दशा को देखकर लक्ष्मण ने राम से युद्ध करने की अनुमति मांगी । राम ने अनुमति दे दी तथा हनुमान और अन्य वीर योद्धाओ को भी लक्ष्मण के साथ भेजा । रावण और हनुमान एक दूसरे के साथ युद्ध करने लगे । हनुमान ने रावण को घूसा मारा जिसकी चोट से रावण के पांव डगमगा गए । उसने स्वयं को अपमानित अनुभव किया । क्रुद्ध होकर वह तेज गति से बाण छोड़ने लगा । उसे रोकने के लिए राम उससे युद्ध करने आये । राम व रावण पहली बार एक - दूसरे के सामने थे ।

राम के तेज बाणों से रावण का रथ टूट गया । तब राम ने एक बाण मारकर उसके मुकुट को गिरा दिया रावण को अपमानित करते हुए राम बोले- हे रावण ! मैं चाहूँ तो अभी तुम्हारा वध कर सकता है किन्तु मैं दया करके तुम्हे छोड़ रहा हूं लंका जाकर नया रथ और अस्त्र - शस्त्र ले आओ । मै तब तुमसे युद्ध करूंगा । ' राम को शक्ति देखकर रावण आश्चर्यचकित था । उसने राम को इतना शक्तिशाली नहीं समझा था । 

अपमान और निराशा मे टुडे डूबे रावण को विवश होकर लंका लौटना पड़ा । चिंतित रावण राम को पराजित करने के विषय में सोचने लगा । उसकी सेना के प्रमुख बोर महाबली योद्धा और सेनापति प्रहस्त तक मारे जा चुके थे । निराशा के मध्य आशा की एक किरण के रूप में उसे छोटे भाई कुंभकर्ण का स्मरण हुआ । कुंभकर्ण को वीरता पर रावण को पूरा भरोसा था । 

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