भगवान को मन से कैसे पहचाने?, भगवान की शक्ति का अपने अंदर अनुभव कैसे करें ?
भगवान को मन से कैसे पहचाने
सारा संसार मन के ही आधार पर स्थित है और मन के ही अनुसार तुम्हें उसका रंग - रूप भी दिखलायी देता है । तुम्हारा मन यदि शुद्ध है तो तुम्हें जगत में भी शुद्धपन अधिक दिखेगा ।
जिनको अपने मन में भगवान् विराजमान दिखते हैं , उन्हें सारे जगत में भगवान् दिख सकते हैं और जिनके मनमें पाप भरे हैं उनको जगत पापों से भरा दिखता है । जीवन्मुक्त महापुरुष समस्त संसार को ब्रह्ममय देखते हैं , भक्त जगत को भगवान से परिपूर्ण पाते हैं और इसीलिये दोनों सर्वत्र तथा सर्वदा परम शान्ति और परमानन्द को प्राप्त रहते हैं ।
भगवान की शक्ति का अपने अंदर अनुभव करें
यदि सुख और शान्ति पाना चाहते हो तो पहले मन में सुख और शान्ति की मूर्तियाँ स्थापन करने की चेष्टा करो । अपने मन के विचार के अनुसार वस्तु तुम्हें प्राप्त होगी और तुम भी वैसे ही बन जाओगे । तुम यदि निश्चय कर लो कि पाप - ताप न तो तुम्हारे अंदर हैं और न कभी तुम्हारे समीप आ सकते हैं तो निश्चय समझो कि पाप - ताप तुम्हारे पाससे भाग जायेंगे- इतना ही नहीं , तुम जहाँ भी जाओगे वहाँ दूसरों के पाप - तापों को भी भगा सकोगे ।
यह सत्य है और ध्रुव सत्य है कि भगवान् नित्य तुम्हारे साथ हैं , वे सर्वथा तुम्हारा संरक्षण करते हैं और आत्मदृष्टि से तुम्हारा स्वरूप भी नित्य शुद्ध - बुद्ध और निष्पाप है । तुम इस सत्य तत्त्व को भूलकर अपने को पापात्मा , दोष और कुविचारों से युक्त , निर्बल और असहाय मान बैठे हो और ऐसा मानते - मानते वस्तुतः ऐसे ही हो | भी चले हो । अब इसके विपरीत अभ्यास करो , प्रतिपल भगवान का , भगवान की कृपा का और भगवान की शक्ति का अपने अंदर अनुभव करो ।
इसका यह अर्थ नहीं है कि तुम पाप करते रहो , दुष्ट विचार और दुर्गुणों में प्रीति करके उन्हें बढ़ाते रहो , भगवान को न मानकर पार्थिव पदार्थों पर अभिमान करो और ऐसा करते हुए भी अपने को शक्तिमान् और बलवान् मान बैठो और भगवान को भूलकर केवल अहङ्कार में ही डूबे रहो ।
भगवान को सच्चे सहायक के रूप में प्राप्त करें
मन के शुभ निश्चय के अनुसार ही शुभ आचरण भी करो । यह सत्य है कि भगवान की कृपा के बल से तुम्हारे मन का निश्चय अटल हो जायगा और तुम्हारे आचरण अपने - आप शुभ बनने लगेंगे , परंतु तुम नित्य उस कृपा का अनुभव करते रहो और कृपा के बल से तमाम बुराइयों को हटाते हुए कल्याण के मार्ग में बढ़ते रहो । दुष्ट विचार , दुर्गुण और दुष्कर्मो को त्यागकर प्रभुस्मरण , अहिंसा , सत्य , क्षमा , संतोष , प्रेम , दया , सेवा , सरलता और परहित - रति आदि शुभ विचार , सद्गुण और सत्कर्मों के ग्रहण करने पर कहीं विपत्ति आ जाय , बड़े भारी संकट का सामना करना पड़े तो घबड़ाकर इन्हें छोड़ मत दो , मनमें जरा भी ऐसा संदेह न आने दो कि अशुभ को - छोड़कर शुभ को ग्रहण करने से ऐसा हुआ है ।
विश्वास रखो ये विपत्ति और संकट वास्तव में विपत्ति और संकट नहीं हैं , ये तो भगवान के भेजे हुए तुम्हारे मददगार हैं जो विपत्ति और संकट का स्वाँग भरकर कसौटी में कस - कसकर तुम्हें सर्वथा निर्दोष बनाने के लिये आये हैं । इन्हें देखकर घबड़ाओ मत । इनका स्वागत करो और अपनी सरल , शुभ , शुद्ध और अटल साधना से अपनी चाल पर सुदृढ़ रहकर - इनके नकली स्वाँग को हटाकर इन्हें अपने सच्चे सहायक के रूप में प्राप्त कर लो ।
भगवान की प्राप्ति के मार्ग में तीन विघ्न
भगवान के पावन मार्ग में सबसे बड़े विघ्न तीन हैं - विषयभोगों की कामना , मान - बड़ाई का मोह और अश्रद्धा । जहाँतक हो सके इन तीनों से बचो । बुरे विचार , बुरे गुण और बुरे कर्म तब तक पूरी तौर से नहीं मिटेंगे जबतक ये तीनों रहेंगे । भगवान् ही एकमात्र प्राप्त करने योग्य वस्तु हैं , मान - बड़ाई का मोह हमें बार - बार मृत्यु के मुख में ले जाने वाला है और अश्रद्धा सारे परमार्थ विचारों का नाश करने वाली है , बार - बार ऐसा विचार कर के मान - बड़ाई के मोह तथा अश्रद्धा का त्याग करो और एकमात्र भगवान को प्राप्त करने की साधना में लग जाओ और भगवान की सर्वत्र सत्ता , उनकी कृपा और उनकी शक्तिपर विश्वास करने से सहज ही तुम ऐसा कर सकोगे ।
मन को विशुद्ध बनाते रहोगे , बुरी भावनाओं का त्याग करते रहोगे तो भगवान की कृपा का अनुभव तुम्हें होगा ही । निरन्तर सद्भावनाओं को मन में लाने की चेष्टा करो । सद्भावनाओं के आते ही बुरी भावनाएँ अपने - आप नष्ट हो जायँगी । सद्भावनाओं से सद्गुणों की और सत्कर्मों की वृद्धि होगी और तुम परम शान्ति और परमानन्द को प्राप्त कर सकोगे ।
परम शान्ति और परमानन्द एक भगवान में ही हैं और भगवान तुमसे कभी अलग नहीं हैं , वे नित्य तुम्हारे साथ हैं , तुमपर नित्य उनकी कृपा की अनवरत वर्षा हो रही है , तुम सदा उनकी कल्याणमयी छत्र - छाया में हो , तुम्हारा सारा फिक्र उनको है और वे ही स्वयं नित्य तुम्हारा योगक्षेम वहन कर रहे हैं ।
0 Comments