Chintpurni mata tample | Mata Chintpurni history in hindi
Chintpurni Mata Tample
यह छिन्मस्तिका देवी का स्थान है। इसे Chintpurni अर्थात चिंता को पूर्ण करने वाली देवी माना जाता है। ऐसा कहा जाता है कि इस स्थान पर सती के चरणों के कुछ अंश गिरे थे। हिंदू धर्म के 51 पीठो में एक पीठ मां Chintpurni Dham के नाम से जाना जाता है। यहां साधक की सर्व मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं।यह स्थान हिमाचल राज्य के जिला ऊना में है। होशियारपुर (पंजाब) से कुछ दूरी पर भरवाई नामक स्थान है। यहां बसों का आवागमन रहता है। भरवाई बस अड्डे से केवल दो तीन मील की दूरी पर Chintpurni देवी का मंदिर है। Naina Devi से Chintpurni तक सीधी बस सेवा भी उपलब्ध है, लगभग 6 से 7 घंटे का मार्ग है।
Chintpurni Mata history in hindi
कहा जाता है कि माईदास नामक दुर्गा माता के एक श्रद्धालु भक्त ने इस स्थान की खोज की थी। दंत कथा के अनुसार माईदास के पिता अठर नामक गांव (रियासत पटियाला) के निवासी थे। उनके तीन पुत्र थे - दवादास, दुर्गादास और सबसे छोटे माईदास। अपने पिता की तरह माईदास का अधिकतर समय देवी की पूजा पाठ में व्यतीत होता था। इस कारण वह अपने बड़े भाइयों के साथ व्यापार आदि कामकाज में पूरा समय नहीं दे पाते थे। इसी बात को लेकर उनके भाइयों ने उन्हें घर से अलग कर दिया। लेकिन माईदास ने फिर भी अपनी भक्ति और दिनचर्या में कोई कमी नहीं आने दी।
एक बार अपनी ससुराल जाते समय माईदास जी मार्ग में घने जंगल में वट वृक्ष के नीचे आराम करने बैठ गए। (इस स्थान का प्राचीन नाम छपरोह था और आजकल उसी वट वृक्ष के नीचे Chintpurni मंदिर बना हुआ है) संयोगवंश माईदास जी की आंख लग गई तथा स्वप्न में उन्हें दिव्य तेज से युक्त एक कन्या दिखाई दी, जिसने आदेश दिया कि तुम किसी स्थान पर रहकर मेरी सेवा करो, लेकिन उनके मस्तिष्क में बार-बार यह ध्वनि गूंजती रही "इस स्थान पर रहकर मेरी सेवा करो, इसी में तुम्हारा भला है"
माईदास जी ने नतमस्तक होकर निवेदन किया - हे जगजननी भगवती मैं अल्प बुद्धि व अशक्त जीव हूं। इस भयानक जंगल में अकेला किस प्रकार रहूंगा? न यहां पानी है, न रोटी है, और न ही कोई स्थान बना हुआ है। यहां तो दिन में ही डर लगने लगता है, तो रात्री कैसे कटेगी? माता ने कहा कि मैं तुमको निर्भय दान देती हूं, आप निडर होकर अपने कर्म करोगे। अब तुम नीचे जाकर किसी बड़े पत्थर को उखाडो, वहां जल मिलेगा, उसी से तुम मेरी पूजा करना। जिन भक्तों की मैं चिंता दूर करूंगी, वह स्वयं मेरा मंदिर बनवा देंगे। जो चढ़ावा चढ़ेगा तुम्हारा गुजारा हो जाएगा। ऐसा कह कर माता पिंडी के रूप में लोप हो गई।
भक्त माईदास की चिंता का निवारण हुआ। वह प्रफुल्लित होकर पहाड़ी से थोड़ा नीचे उतरे और एक बड़ा पत्थर हटाया तो काफी मात्रा में जल निकल आया। माईदास की खुशी की सीमा ने रही। उन्होंने वही अपनी झोपड़ी बना ली और उस जल से नित्य नियमपूर्वक पिंडी की पूजा करनी प्रारंभ कर दी। आज भी वह बड़ा पत्थर, जिसे माईदास ने उखाड़ा था, Chintpurni मंदिर में रखा हुआ है। जिस स्थान से जल निकलता था, वहां अब सुंदर तालाब बनवा दिया गया है। इस स्थान से जल लाकर माता का अभिषेक किया जाता है।
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Jai Mata Di
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