ज्वाला जी मंदिर हिमाचल प्रदेश | ज्वाला जी मंदिर का इतिहास और ज्योति दर्शन

ज्वाला जी मंदिर हिमाचल प्रदेश | ज्वाला जी मंदिर का इतिहास और ज्योति दर्शन

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यह धूमा देवी का स्थान है। इसकी मान्यता 51 शक्तिपीठो में सर्वोपरि है। कहा जाता है कि यहां पर मां भगवती सती की महाजिह्वा गिरी थी, तथा भगवान शिव उन्नमत्त भैरव रूप में स्थित है। इस तीर्थ में देवी के दर्शन "ज्योति" के रूप में किए जाते हैं। पर्वत की चट्टान से नौ विभिन्न स्थानों पर यह ज्योति बिना किसी इंधन के अपने आप प्रज्वलित होती है। इसी कारण देवी को "ज्वाला जी" के नाम से पुकारा जाता है और यह कथन ज्वालामुखी नाम से प्रसिद्ध हुआ। 

              ज्वाला जी मंदिर का मार्ग परिचय 

यह स्थान हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा में स्थित है। पंजाब राज्य में जिला होशियारपुर के गोपीपुरा डेरा नामक स्थान से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर ज्वाला जी का मंदिर है। पठानकोट से कांगड़ा होते हुए भी यात्री ज्वालामुखी पहुंच सकते हैं। कांगड़ा से ज्वालामुखी लगभग 2 घंटे का बस मार्ग है, हर आधे घंटे बाद बस चलती हैं।

              श्री ज्वालामुखी मंदिर का इतिहास


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श्री ज्वालामुखी मंदिर के निर्माण के विषय में एक दंत कथा प्रचलित है, जिसके अनुसार सतयुग में सम्राट भूमिचंद्र ने ऐसा अनुमान किया कि भगवती सती की जिह्वा भगवान विष्णु के धनुष से कटकर हिमालय के धौलीधार पर्वतों पर गिरी है। काफी प्रयत्न करने पर भी वह उस स्थान को ढूंढने में असफल रहे। तदोपरांत उन्होंने नगरकोट-कांगड़ा में एक छोटा सा मंदिर भगवती सती के नाम से बनवाया। 

इसके कुछ वर्षों बाद किसी ग्वाले ने सम्राट भूमिचंद्र को सूचना दी कि उसने अमुक पर्वत पर ज्वाला निकलती हुई देखी है, जो ज्योति के समान निरंतर जलती रहती है। महाराज भूमिचंद्र जी ने स्वयं आकर इस स्थान के दर्शन किए और घोर वन में मंदिर का निर्माण किया। मंदिर में पूजा के लिए साक द्वीप से भोजक जाति के 2 पवित्र ब्राह्मणों को लाकर यहां का पूजन अधिकार सौंपा गया। जिनके नाम पंडित श्रीधर और पंडित कमलापति थे। उन्हीं भोजक ब्राह्मणों के वंशज आज तक श्री ज्वाला जी की पूजा करते आ रहे हैं। महाभारत के एक प्रसंग के अनुसार पांच पांडवों (युधिष्ठिर, भीम, अर्जुन, नकुल और सहदेव) ने ज्वालामुखी की यात्रा की तथा मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया।

            हवन कुंड सहित पवित्र ज्योति के दर्शन 


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1 :- चांदी के जाला में सुशोभित मुख्य ज्योति का पवित्र नाम "महाकाली" जी है जो मुक्ति-भुक्ति देने वाली है।

2 :- इसके कुछ नीचे ही भंडार भरने वाली महामाया "अन्नपूर्णा" की ज्योति है।

3 :- दूसरी ओर शत्रुओं का विनाश करने वाली "चंडी माता" की ज्योति है।

4 :- समस्त व्याधिओं का नाश करने वाली यह ज्योति "हिंगलाज" भवानी की है।

5 :- पंचम ज्योति "विंध्यवासिनी" की है, जो शोक से छुटकारा देती है।

6 :- धन-धान्य देने वाली "महालक्ष्मी" की यह ज्योति कुंड में सुशोभित है।

7 :- संतान सुख देने वाली "अंबिका" भी कुंड में दर्शन दे रही हैं। 

8 :- इसी कुंड में विराजमान परम पवित्र "अंजना" आयु व सुख प्रदान करती है।

                   मुख्य ज्योति दर्शन 


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श्री ज्वालामुखी मंदिर में देवी के दर्शन नौ ज्योति के रूप में होते हैं। यह ज्योतियां कभी कम या अधिक भी रहती हैं। भाव इस प्रकार माना जाता है-नवदुर्गा ही चौदह भुवनों की रचना करने वाली हैं। जिनके सेवक - सत्व, रज और तम तीन गुण हैं। मंदिर के द्वार के सामने चांदी के आले मे जो मुख्य ज्योति सुशोभित है, उसको महाकाली का रूप कहा जाता है। यह पूर्ण ब्रह्म ज्योति है तथा मुक्ति और भुक्ति देने वाली है। शेष ज्योतियों के पवित्र नाम व दर्शन इस प्रकार हैं।

गोरख डिब्बी

यहां पर एक छोटे से कुंड में जल निरंतर खोलता रहता है और देखने में गर्म प्रतीत होता है परंतु तालाब का जल ठंडा है। जल हाथ से छूकर देखने पर बिल्कुल ठंडा है। असली स्थान पर छोटे कुंड के ऊपर धूप की जलती बत्ती दिखाने से जल के ऊपर बड़ी ज्योति प्रकट होती है। इसे रुद्र कुंड भी कहा जाता है। यह दर्शनीय स्थान ज्वालामुखी मंदिर की परिक्रमा में लगभग दस सीढ़ियां ऊपर चढ़कर दाईं ओर को है। कहा जाता है कि यहां पर गुरु गोरखनाथ जी ने तपस्या की थी। वह अपने शिष्य सिद्ध नागार्जुन के पास डिब्बी धर कर खिचड़ी मांगने गए, लेकिन खिचडी लेकर वापिस नहीं लौटे और डिब्बी का जल गर्म नहीं हुआ।

सेजा भवन 

यह भगवती ज्वाला जी का शयन स्थान है। भवन में प्रवेश करते ही बीचो-बीच संगमरमर का चबूतरा बना हुआ है, जिसके ऊपर चांदनी लगी हुई है। रात्री दस बजे शयन आरती के उपरांत भगवती के शयन के लिए कपड़े एवं पूर्ण श्रंगार के सामान के साथ पानी का लोटा और दातुन आदि रखी जाती है। सेजा भवन में चारों को दस महाविद्याओं तथा महाकाली, महालक्ष्मी व महासरस्वती की मूर्तियां बनी हुई हैं। श्री गुरु गोविंद सिंह जी द्वारा रखवाई गई श्री गुरु ग्रंथ साहिब की हस्तलिखित प्रतिलिपि भी सेवा भवन में सुरक्षित हैं।

         ज्वालामुखी तीर्थों के दर्शनीय स्थल 

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श्री राधा कृष्ण मंदिर 

गोरख डिब्बी के समीप ही राधा कृष्ण जी का एक छोटा सा मंदिर है। विश्वास किया जाता है कि यह अति प्राचीन मंदिर कटोच राजाओं के समय में बनवाया था। 

लालशिवालय 

गोरख डिब्बी से कुछ ऊपर चढ़ने पर शिव-शक्ति और फिर लाल शिवालय के दर्शन होते है। शिव शक्ति में शिवलिंग के साथ ज्योति के  दर्शन होते हैं। लाल शिवालय भी सुंदर दर्शनीय मंदिर है। 

सिद्धि नागार्जुन 

यह रमणीक स्थान लाल शिवालय से ऊपर लगभग एक छलांग सीढ़ियां चढ़कर आता है यहां पर डेढ हाथ ऊंची काले पत्थर की मूर्ति है, इसी को सिद्ध नागार्जुन कहते हैं। इसके विषय में ऐसी कहावत प्रसिद्ध है, कि जब गुरु गोरखनाथ जी खिचडी लाने गए और बहुत देर हो जाने पर भी वापिस नहीं लौटे, तब उनके शिष्य सिद्ध नागार्जुन पहाड़ी पर चढ़कर उन्हें देखने लगे कि गुरु जी कहां निकल गए। वहां से उन्हें गुरु तो दिखाई नहीं दिए, परंतु यह स्थान इतना मनोहर लगा कि नागार्जुन वही समाधि लगा कर बैठ 
गए।

अंबिकेश्वर महादेव 

सिद्धि नागार्जुन से लगभग एक छलांग पूर्व की ओर यह मंदिर है। इस स्थान को उन्नमत्त भैरव भी कहते हैं। श्री शिव महापुराण की पीछे लिखी कथा के अनुसार जहां जहां भी सती के अंग प्रत्यंग गिरे, वहीं वहीं पर शिव जी ने किसी न किसी रूप में निवास किया यथा ज्वालामुखी में शिव जी उन्नमत्त भैरव रूप में स्थित हुए। मंदिर अंबिकेश्वर महादेव के नाम से प्रसिद्ध है तथा यह स्थान बहुत रमणीक है।

टेढ़ा मंदिर 

अंबिकेश्वर से लगभग एक छलांग की चढ़ाई चढ़ने के बाद इस प्राचीन मंदिर में सीताराम जी के दर्शन होते हैं। कहा जाता है कि भूचाल आने से यह मंदिर बिल्कुल टेढ़ा (तिरछा) हो गया था, फिर भी देवी के प्रताप से गिरा नहीं। देखने में अब भी यह मंदिर टेढ़ा अर्थात एक ओर को झुका हुआ है, इसलिए यह टेढ़ा-मंदिर नाम से जन-साधारण में अधिक प्रसिद्ध है।

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